1945 के बाद ही इस महाशक्तियों में किस प्रकार उपनिवेश विरोधी संघर्ष में अपनी रुचि प्रदर्शित की – द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के बाद, वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में क्रांतिकारी बदलाव आया, जिसके परिणामस्वरूप उपनिवेश विरोधी संघर्षों में महाशक्तियों की रुचि में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। 1945 से 1980 के दशक के बीच, एशिया, अफ्रीका और कैरिबियाई क्षेत्र के अधिकांश उपनिवेश स्वतंत्र राष्ट्र बन गए। इस अध्याय में, हम 1945 के बाद महाशक्तियों द्वारा उपनिवेश विरोधी संघर्षों में बढ़ती रुचि के पीछे के प्रमुख कारकों का विश्लेषण करेंगे।
शीत युद्ध की गतिशीलता
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध की शुरुआत हुई। दोनों महाशक्तियां वैश्विक प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही थीं, और उपनिवेश विरोधी आंदोलन उनके लिए रणनीतिक महत्व रखते थे। अमेरिका ने सोवियत संघ के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए एक “स्वतंत्र राष्ट्रों” की दुनिया बनाने का प्रयास किया, जबकि सोवियत संघ ने साम्राज्यवाद के खिलाफ क्रांतिकारी संघर्षों का समर्थन किया।
उपनिवेशवाद विरोधी भावना का उदय
1945 के बाद ही इस महाशक्तियों में किस प्रकार उपनिवेश विरोधी संघर्ष में अपनी रुचि प्रदर्शित की – द्वितीय विश्व युद्ध ने उपनिवेशित लोगों में आत्मनिर्णय और स्वतंत्रता की भावना को जगाया। युद्ध के दौरान, कई उपनिवेशवादी सैनिकों ने अपने देशों के लिए लड़ाई लड़ी, जिससे उन्हें राष्ट्रीय गौरव और आत्मविश्वास की भावना मिली। युद्ध के बाद, वे अपने स्वयं के मामलों को स्वयं निर्धारित करने के अधिकार की मांग करने लगे।
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संयुक्त राष्ट्र की भूमिका
1945 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र (UN) ने उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलनों को वैधता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। UN चार्टर ने सभी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार को स्वीकार किया और उपनिवेशवाद को “मानवता के खिलाफ अपराध” घोषित किया। UN ने उपनिवेशों में स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण चुनावों का आयोजन करने और उपनिवेशवादी शक्तियों पर दबाव डालने में मदद की। 1945 के बाद ही इस महाशक्तियों में किस प्रकार उपनिवेश विरोधी संघर्ष में अपनी रुचि प्रदर्शित की
आर्थिक हित
महाशक्तियों के पास उपनिवेशों में महत्वपूर्ण आर्थिक हित थे। वे कच्चे माल के स्रोतों, नए बाजारों और सस्ते श्रम की तलाश में थे। उपनिवेश विरोधी आंदोलनों ने इन हितों को खतरे में डाल दिया, इसलिए महाशक्तियों ने अक्सर स्वतंत्रता आंदोलनों को दबाने या उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास किया।
नैतिक और वैचारिक कारक
कुछ महाशक्तियों, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, ने उपनिवेशवाद को नैतिक रूप से गलत और लोकतंत्र के सिद्धांतों के विपरीत माना। उन्होंने स्वतंत्रता और आत्मनिर्णय के मूल्यों को बढ़ावा दिया और उपनिवेश विरोधी आंदोलनों को नैतिक समर्थन प्रदान किया।
उपनिवेशवाद और उपनिवेश में क्या अंतर है?
उपनिवेशवाद
- यह एक राजनीतिक और आर्थिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक शक्तिशाली देश (उपनिवेशवादी शक्ति) दूसरे देश (उपनिवेश) पर अपना नियंत्रण स्थापित करता है।
- उपनिवेशवादी शक्ति उपनिवेश की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवस्था पर हावी हो जाती है।
- इसका उद्देश्य शोषण होता है, जिसमें उपनिवेश के संसाधनों और लोगों का उपयोग उपनिवेशवादी शक्ति के लाभ के लिए किया जाता है।
उपनिवेश
- यह एक क्षेत्र या भूभाग है जो किसी उपनिवेशवादी शक्ति के नियंत्रण में होता है।
- उपनिवेशों में अपनी सरकार नहीं होती है, बल्कि वे उपनिवेशवादी शक्ति द्वारा शासित होते हैं।
- उपनिवेशवादी शक्ति उपनिवेशों में कानून बनाती है, कर लगाती है और न्याय व्यवस्था चलाती है।
- उपनिवेशों के लोग दूसरे दर्जे के नागरिक होते हैं और उन्हें उपनिवेशवादी शक्ति के नागरिकों के समान अधिकार नहीं होते हैं
उपनिवेशवाद कितने प्रकार के होते है?
बसने वाले उपनिवेशवाद
- उद्देश्य: नई भूमि पर बसना और वहां एक नया समाज स्थापित करना।
- तरीका: बड़ी संख्या में लोगों का स्थानांतरण, अक्सर स्वदेशी आबादी को विस्थापित करके या नष्ट करके।
- उदाहरण: उत्तर अमेरिका में ब्रिटिश उपनिवेश, ऑस्ट्रेलिया में यूरोपीय उपनिवेश।
शोषणात्मक उपनिवेशवाद
- उद्देश्य: प्राकृतिक संसाधनों और श्रम का शोषण करके आर्थिक लाभ प्राप्त करना।
- तरीका: स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को नियंत्रित करना, कर लगाना और एकल-फसल कृषि जैसे शोषणकारी प्रथाओं को लागू करना।
- उदाहरण: भारत में ब्रिटिश राज, अफ्रीका में बेल्जियम कांगो।
वृक्षारोपण उपनिवेशवाद
- उद्देश्य: मुख्य रूप से नकदी फसलों (जैसे चाय, कॉफी, रबर) की खेती के लिए उपनिवेशों की स्थापना करना।
- तरीका: बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण स्थापित करना, अक्सर स्वदेशी लोगों को जबरदस्ती मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर करना।
- उदाहरण: कैरिबियन में स्पेनिश उपनिवेश, दक्षिण अमेरिका में पुर्तगाली उपनिवेश।
आंतरिक उपनिवेशवाद
- उद्देश्य: एक ही देश के भीतर एक क्षेत्र या समूह का शोषण और नियंत्रण करना।
- तरीका: राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक असमानताएं पैदा करना, हाशिए पर रहने वाले समूहों के अधिकारों को कम करना।
- उदाहरण: स्कॉटलैंड और वेल्स में ब्रिटिश शासन, अमेरिका में मूल अमेरिकियों का उत्पीड़न।
नव-उपनिवेशवाद
- उद्देश्य: औपनिवेशिक शासन के बाद भी, आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव बनाए रखना।
- तरीका: बहुराष्ट्रीय कंपनियों, ऋण और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से शोषण करना।
- उदाहरण: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अफ्रीकी देशों का शोषण।
वर्तमान में कितने देश उपनिवेश हैं?
वर्तमान में 8 देश उपनिवेश हैं
- ऑस्ट्रेलिया
- डेनमार्क
- नीदरलैंड
- न्यूजीलैंड
- नॉर्वे
- फ्रांस
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- यूनाइटेड किंगडम
उपनिवेशवाद की शुरुआत कहां से हुई?
प्राचीन काल में
- यूनानी और रोमन साम्राज्य: भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उपनिवेश स्थापित करने वाले शुरुआती साम्राज्यों में से थे।
- मौर्य साम्राज्य: भारत में, मौर्य साम्राज्य ने 300 ईसा पूर्व में एक विशाल क्षेत्र पर शासन किया, जिसे उपनिवेशवाद का एक रूप माना जा सकता है।
- चीन: हान राजवंश (206 ईसा पूर्व – 220 ईस्वी) ने भी अपने क्षेत्र का विस्तार किया और पड़ोसी क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित किया।
मध्यकालीन काल में
- अरब साम्राज्य: 7वीं और 8वीं शताब्दी में, अरब साम्राज्य ने उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और स्पेन के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की, जिससे एक विशाल उपनिवेशवादी शक्ति का निर्माण हुआ।
आधुनिक काल में
- यूरोपीय उपनिवेशवाद: 15वीं शताब्दी से, यूरोपीय शक्तियां, विशेष रूप से पुर्तगाल, स्पेन, ब्रिटेन, फ्रांस और नीदरलैंड, ने दुनिया भर में व्यापक उपनिवेश स्थापित किए।
- नए साम्राज्यवाद: 19वीं शताब्दी में, यूरोपीय शक्तियों ने अफ्रीका और एशिया के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित किया, जिसे “नए साम्राज्यवाद” के रूप में जाना जाता है।