IGNOU MSK 008 Important Questions And Answers In Hindi

IGNOU MSK 008 Important Questions And Answers In Hindi- इग्नू एमएसके 008 संस्कृत साहित्य: गद्य, पद्य और नाटक (संस्कृत साहित्य: गद्य, कविता और नाटक) के लिए एक पाठ्यक्रम कोड है जो इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय द्वारा प्रस्तावित मास्टर ऑफ आर्ट्स (संस्कृत) (एमएसके) कार्यक्रम का हिस्सा है।

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  • खंड-1 नैषधीयचरितम् (श्रीहर्ष) प्रथम सर्ग
  • Khand-1 Naishadhiyacharitam (shreeharsh) pratham sarg
  • खंड-2 कादम्बरी (बाणभट्ट) महाश्वेता वृत्तान्त
  • Khand-2 Kadambari (banabhatt) mahashveta vrttant
  • खंड-3 उत्तररामचरितम् (भवभूति)
  • Khand-3 Uttararamacaritam (bhavabhuti)
  • खंड-4 नलचम्पू त्रिविक्रमभट्ट प्रथम उच्छ्वास वर्षावर्णनपर्यन्त
  • khand-4 Nalachampoo trivikramabhatt pratham uchchhvas varshavarnanaparyant

प्रश्न 1.श्रीहर्ष के जीवन परिचय एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिये ?

श्रीहर्ष का जीवनवृत्त और कृतित्व

श्रीहर्ष ने नैषधीयचरित के सर्गान्त पद्यों में अपने विषय में बहुत कुछ परिचय दे दिया
है जिसमें परिवार विषयक जानकारी के साथ-साथ कवि के ज्ञानोत्कर्ष के विषय में भी जानकारी मिल जाती है श्रीहर्ष के पिता का नाम हीर तथा माता का नाम मामल्य देवी था।
जीवनवृत्त

श्रीहर्ष के पिता हीर काशी के राजा गहड़वालवंशी विजय चन्द्र की सभा में प्रधान पंडित थे-
श्रीहर्ष कविराजराजिमुकुटालंकारहीरः सुतं ।

श्री हर्ष के विषय में कुछ किवदन्तियाँ प्रचलित हैं जो रोचक हैं किन्तु प्रमाणिकता पर भी संदेह है। एक किंवदन्ती के अनुसार विशिष्ट विद्वान मिथिला के निवासी तथा प्रसिद्ध नैयायिक उदयनाचार्य के साथ हीर का शास्त्रार्थ हुआ और इस शास्त्रार्थ में इनके पिता हीर की पराजय हुई।

मृत्यु के समय तक वह इस पराजय को भूल नहीं पायें और अपने बेटे श्रीहर्ष से कहा यदि तुम मेरे सुपुत्र हो तो उस पंडित को शास्त्रार्थ में अवश्य पराजित करना।

इसके बाद हर्ष ने गंगातीर पर “चिन्तामणि” मंत्र का वर्ष भर जप किया। भगवती त्रिपुरा इनसे प्रसन्न हुई और अप्रतिम पाण्डित्य का वरदान प्रदान किया श्रीहर्ष का वैदुष्य इतना प्रखर हो गया कि इनके द्वारा लिखी गयी कविता आदि को कोई कवि समझ ही नहीं पाता था। अतः उन्होंने पुनः भगवती की तपस्या की भगवती ने कहा आधी रात के समय माथे को जल से गीला रखो और दही पीओ श्रीहर्ष द्वारा वैसा ही किया गया तब जाकर विद्वान लोग इनकी रचनाओं को समझने में समर्थ हुए । अन्ततः उन्होंने उदयानाचार्य को हराकर पिता की अंतिम इच्छा पूर्ण की। काश्मीर में इनके ग्रन्थों का बड़ा आदर किया गया।

कई सर्गों के अन्तिम श्लोकों में इनके अन्य ग्रन्थों के नाम प्राप्त होते है यथा सर्ग-4, 5, 6, 7, 9, 17, 18 22 के अन्तिम श्लोक में नैषधीय चरित में श्री हर्ष ने जान-बूझकर यत्र-तत्र अप्रतिम पाण्डित्य प्रदर्शित किया है, अतएव अनेक ग्रन्थ कूट पद्य प्राप्त होते है। उन्हें अपने वैदुष्य का घमंड भी बहुत था और कहीं कही अक्खड़ एवं स्वच्छन्द वृत्ति का परिचय भी प्राप्त होता है अपने समक्ष अन्य कवियों को तुच्छ समझते थे। माऽरिमन् खलः- खेलतु “(22/152 ) से ज्ञात होता है कि अनेक कटु आलोचक भी विद्यमान थे।

श्रीहर्ष और नैषधीयचरितम्

काव्यप्रकाशकार मम्मट श्रीहर्ष के मामा कहे जाते हैं प्रसंग मिलता है कि श्री हर्ष ने जब नैषधीयचरित दिखाया तो मम्मट ने कहा कि यदि तुम यह ग्रन्ध मुझे पहले दिखा देते तो दोष प्रकरण के लिये किसी अन्य ग्रन्थ का सहारा नहीं लेना पड़ता। इसके लिये यह श्लोक मुख्य रूप से प्रस्तुत किया जाता है- तवं वर्त्मनि वर्ततां शिवम्” (2-62) अर्थात तेरा मार्ग शुभ हो इसी को यदि कहा जाए कि तब वर्ग निवर्ततां शिवम् करने पर अर्थ का अनर्थ हो जाता है जैसे- तेरा मार्ग अशुभ हो।

प्रश्न 2.नैषधे विद्वदौषधम् पर निबन्धात्मक प्रश्न लिखिये ?

प्रश्न 3.नैषधे पदलालित्य सूक्ति पर प्रकाश डालिये।

प्रश्न  4. श्रीहर्ष की दार्शनिकता पर विस्तृत प्रकाश डालिये ?

प्रश्न 5.नैषधीयचरितम् एक महाकाव्य है? इस कवन की विवेचना कीजिए।

प्रश्न 6. बृहत्त्रयी से आप क्या समझते हैं? इनमें किन किन महाकाव्यों की गणना कीजाती है? विस्तृत विवेचन कीजिए।

प्रश्न 7.नैषध के नायक नल के गुणों का वर्णन कीजिए?

प्रश्न 8.’राजा नल की वदान्यता का वर्णन कीजिए?

प्रश्न 9.नैषध के नायक राजा नल के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।

प्रश्न 10 .श्रीहर्ष के जीवन वृत्त एवं कृतित्व का परिचय दीजिए ।

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