FREE MJY-002 सिद्धान्‍त ज्‍योतिष एवं काल NOTES : IGNOU HELP BOOK With Previous Years

MJY-002 सिद्धान्त ज्योतिष एवं काल NOTES

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इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) के सिद्धान्त ज्योतिष और काल पाठ्यक्रम में पढ़ रहे छात्रों के लिए IGNOU MJY-002 सहायता किताब एक विस्तृत मार्गदर्शिका है। यह पुस्तक कठिन खगोलीय और गणितीय सिद्धांतों को आसानी से समझाती है, साथ ही पिछले वर्षों के हल प्रश्न-पत्रों के साथ आती है, जिससे परीक्षा की तैयारी आसान होती है।

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📖 अध्यायवार नोट्स (Hindi Medium)

CHAPTER 1: सिद्धांत स्कंध

1.1 सिद्धांत ज्योतिष का परिचय

सिद्धांत ज्योतिष भारतीय खगोलशास्त्र और गणित पर आधारित एक प्राचीन विद्या है। यह मुख्यतः वैदिक काल से उत्पन्न होकर आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त और भास्कराचार्य जैसे विद्वानों के योगदान से समृद्ध हुआ। इसका उद्देश्य धार्मिक कृत्यों, पर्वों और दैनिक जीवन की शुभ तिथियों का निर्धारण करना था।

1.2 गोलज्ञान

गोलज्ञान खगोलीय पिंडों की गोल संरचना, राशिचक्र और ग्रहों की गतियों के अध्ययन को कहा जाता है। इसमें ग्रहमंडल, अक्षांश-देशांतर और नाड़ीवृत्त जैसी अवधारणाएं सम्मिलित हैं।

1.3 भूगोल का स्वरूप

पृथ्वी की गोलाकार आकृति, उसकी परिधि और जलवायु क्षेत्रों की व्यवस्था इस खंड में आती है। वैदिक ग्रंथों में पृथ्वी की परिधि लगभग 4,967 योजन मानी गई है।

1.4 सूर्यादि ग्रहों के भगण

भगण का अर्थ है किसी निश्चित काल में ग्रहों की पूरी हुई परिक्रमाओं की संख्या। यह वैदिक गणनाओं में महायुग की अवधारणा से जुड़ा होता है।

1.5 ग्रहगति विवेचन

ग्रहों की गति को मध्यम (औसत), वक्री (रेट्रोग्रेड) और मार्गी (डायरेक्ट) के रूप में समझाया गया है। मंदोच्च और शीघ्रोच्च जैसे सिद्धांत ग्रहगति को स्पष्ट करते हैं।

1.6 भूव्यास एवं स्पष्ट भूपरिधि

सूर्य सिद्धांत के अनुसार, पृथ्वी की त्रिज्या 800 योजन और परिधि 5,026.5 योजन बताई गई है, जो आधुनिक गणनाओं से काफी मेल खाती है।

CHAPTER 2: ग्रहानयन

2.1 अहर्गण का स्वरूप

अहर्गण का अर्थ है – किसी युग की शुरुआत से वर्तमान तक के दिनों की गणना। यह ग्रहों की स्थिति ज्ञात करने का आधार बनता है।

2.2 मध्यमग्रह साधन

मध्यम ग्रह = (भगण × अहर्गण) ÷ युग के दिन
यह सूत्र ग्रहों की औसत स्थिति प्राप्त करने में उपयोग होता है।

2.3 मन्दफल एवं शीघ्रफल

  • मन्दफल: मंदोच्च के कारण गति में अंतर

  • शीघ्रफल: शीघ्रोच्च के कारण समायोजन
    इनका उपयोग ज्यामितीय विधियों से स्पष्ट ग्रह स्थिति निकालने में होता है।

2.4 अन्य तकनीकी शब्द

  • क्रान्ति: ग्रह का खगोलीय अक्षांश

  • देशान्तर: दो स्थानों के बीच समय का अंतर

  • उदयान्तर: ग्रह के उदय में होने वाला भिन्नता

CHAPTER 3: काल विवेचन

3.1 काल की अवधारणा

काल को नित्य (अनंत) और अनित्य (सीमित) दो रूपों में देखा गया है। त्रुटि (1/33750 सेकंड) से लेकर महायुग तक इसकी गणना की जाती है।

3.2 अमूर्तकाल

यह दार्शनिक समय है, जैसे कालचक्र की अवधारणा, जिसमें समय निरंतर चक्र की तरह चलता रहता है।

3.3 मूर्तकाल

  • तिथि: सूर्य-चंद्र के बीच 12° कोण

  • करण: तिथि का आधा

  • नक्षत्र: चंद्रमा की 27 अवस्थाएं

3.4 भचक्र एवं ग्रहकक्षा

भचक्र 12 राशियों में विभाजित है, जिसमें ग्रह भ्रमण करते हैं। कक्षाएं दीर्घवृत्ताकार मानी गई हैं।

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CHAPTER 4: नवविध कालमान

4.1 ब्राह्म एवं दिव्य मान

  • ब्राह्म मान: 1 ब्रह्म दिवस = 1000 महायुग

  • दिव्य मान: देवताओं का 1 वर्ष = मानव के 360 वर्ष

4.2 पैत्र्य, प्राजापत्य, बार्हस्पत्य

  • पैत्र्य: पितृलोक का मास = 30 दिन

  • प्राजापत्य: 10,000 वर्ष

  • बार्हस्पत्य: बृहस्पति का 1 वर्ष = 361 दिन

4.3 सौर, सावन, चान्द्र, नाक्षत्रमान

  • सौरमान: सूर्य की राशि में गति

  • सावन: सूर्योदय से सूर्योदय

  • चान्द्रमान: अमावस्या से अमावस्या

  • नाक्षत्र: एक नक्षत्र को पार करने का समय

4.4 अहोरात्र व्यवस्था

दिन-रात को 30 मुहूर्त में बाँटा गया है (1 मुहूर्त = 48 मिनट)। याम और घटी की अवधारणाएं भी उपयोगी हैं।

4.5 अधिमास एवं क्षयमास

  • अधिमास: चंद्र-सौर कैलेंडर संतुलन हेतु अतिरिक्त मास

  • क्षयमास: जब एक मास का लोप होता है

📌 निष्कर्ष

MJY-002 का पाठ्यक्रम भारतीय वैज्ञानिक सोच, गणितीय कौशल और खगोलीय ज्ञान का उत्कृष्ट उदाहरण है। सिद्धांत ज्योतिष, न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से, बल्कि आधुनिक खगोलशास्त्र की नींव के रूप में भी महत्वपूर्ण है। इस विषय में दक्षता विद्यार्थियों को वैदिक गणना पद्धतियों की गहराई से समझ प्रदान करती है।

🎓 IGNOU IMPORTANT QUESTIONS FOR MJY-002

  1. सिद्धान्त की परिभाषा लिखें और उसका परिचय दीजिए।

  2. आधुनिक सन्दर्भ में सिद्धान्त ज्योतिष की उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।

  3. ग्रहानयन और ग्रहों के संस्कार क्या होते हैं?

  4. सिद्धान्त में भौगोलिक गणना का स्वरूप समझाइए।

  5. खगोलीय गणना की विधियों का वर्णन कीजिए।

  6. गोलज्ञान क्या है? उसका महत्व समझाइए।

  7. गोलपरिभाषा को स्पष्ट कीजिए।

  8. गोलाध्याय की विशेषताओं का वर्णन करें।

  9. भगण की परिभाषा एवं उसका परिचय दीजिए।

  10. चन्द्रभगणोपपत्ति क्या है?

  11. भास्कराचार्य का भगण पर दृष्टिकोण बताइए।

  12. सूर्यसिद्धांत के अनुसार भगण का विवेचन कीजिए।

  13. ग्रहों की मध्यम गति के प्रकार क्या हैं?

  14. ग्रहगति के कारणों का विश्लेषण करें।

  15. स्पष्ट ग्रहगति के साधनों पर प्रकाश डालिए।

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