IGNOU MSK 004 Important Questions And Answers In Hindi

IGNOU MSK 004 Important Questions And Answers In Hindi- इग्नू MSK 004 इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) द्वारा अपने मास्टर ऑफ आर्ट्स (संस्कृत) कार्यक्रम (MSK ) के लिए प्रस्तावित आधुनिक संस्कृत साहित्य और साहित्यशास्त्र (आधुनिक संस्कृत साहित्य और साहित्यिक आलोचना) के पाठ्यक्रम कोड को संदर्भित करता है।

 FOR SOLVED PDF
WhatsApp – 8130208920  

  • पाठ्यक्रम का नाम: आधुनिक संस्कृत साहित्य और साहित्यशास्त्र (आधुनिक संस्कृत साहित्य और साहित्यिक आलोचना)
  • कोर्स कोड: MSK-004
  • स्तर: मास्टर डिग्री (एमए)
  • कार्यक्रम: मास्टर ऑफ आर्ट्स (संस्कृत) (एमएसके)

प्रश्न  1.नवीन भावों के आधार पर 20 वीं शताब्दी में पद्य गद्य और नाट्य की रचना विधा पर प्रकाश डालिए।

IGNOU MSK 004 Important Questions And Answers In Hindi- संस्कृत वाङ्मय में गद्य साहित्य की अपनी अतिरिक्त विशिष्टता है। गद्य रचना की सूचना हमें वैदिक संहिताओं से ही मिलनी प्रारम्भ हो जाती है। संस्कृत साहित्य का गद्य प्राचीनता के लिए प्रौढ़ता के लिए तथा अपनी तथा अपनी उपादेयता और भाषाभिव्यक्ति के लिए गौरवपूर्ण है।

वैदिक काल से मध्यकाल तक गद्य के विकास का बहुत बड़ा इतिहास है। वैदिक काल का गद्य, लौकिक संस्कृत का गद्य अथवा पौराणिक गद्य जो भी हो उनमें बोलचाल, प्रौढ़ता, समासबहुलता, सौन्दर्य, मोहकता तथा आलंकारिकता विद्यमान है। प्राचीन गद्यकारों में बाणभट्ट का नाम अतिप्रसिद्ध है। अभिलेखों में भी गद्य की विद्या पायी गयी है। बाणभट्ट तो बाद में आते हैं, पतंजलि, शबरस्वामी, शंकराचार्य और जयंतभट्ट का नाम पहले से प्रसिद्ध है। महाभाष्य गद्यात्मक है। शबरस्वामी मीमांसक हैं।

कर्ममीमांसा का गद्यात्मक भाष्य उपलब्ध है। शंकराचार्य ने उपनिषदों पर गद्य शैली में ही भाष्य लिखा है। न्यायशास्त्र में भी गद्य है सुबन्धु कृत वासवदत्ता लौकिक संस्कृत गद्यकाव्य की विधा के उत्कर्ष काल की रचना है। इस प्रकार गद्यविधा की बहुत बड़ी परम्परा है किन्तु यहाॅ प्रमुख आधुनिक गद्यविधा का परिचय आपके अध्ययन का लक्ष्य है।

आधुनिक गद्यविधा सुबन्धु बान और दन्दी की परम्परा का अनुशरण परवर्ती काल के कवियों ने किया और ये गद्यरचना में प्रवृत्त हुए जिनका क्रमशः संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

विषय और शैली के आधार पर अग्नि पुराण में गद्यकाव्य के आख्यायिका कथा खण्डकाव्था, परिकथा और कथानक इन पाँच भेदों का वर्णन प्राप्त होता है (अग्निपुराण 174 काव्यादिलक्षणम् 12-17)

छन्दों के बन्ध से रहित पदसमूह को गद्य कहते हैं। इसके चार प्रमेद इस प्रकार है- मुक्तक वृत्तगन्धि उत्कलिकाप्राय और चूर्णक। दण्डी के काव्यादर्श में इन सब भेदों की चर्चा मिलती है। दण्डी ने माना है कि खण्डकथा परिकथा तथा कथानक आदि कथा और आख्यायिका में ही आते हैं। इन्हीं में उनका अन्तर्भाव होता है।

प्रश्न 2.गद्य रचना पर टिप्पणी लिखिए।

प्रश्न 3.नाट्य रचना पर टिप्पणी लिखिए।

प्रश्न 4.उन्नीसवीं तथा बीसवीं शताब्दी में विविध विषयगत महाकाव्य विषयक वर्णन कीजिए।

प्रश्न 5. लघुकाव्य की विधा में बीसवीं शताब्दी के वैविध्यपरक रचनाओं का उल्लेख कीजिए।

प्रश्न 6.विविध विषयगत रचनाओं का आधुनिक संस्कृत साहित्य की विकास यात्रा में क्या योगदान हैं? निरूपण कीजिए।

प्रश्न 7.अनूदिन साहित्य का परिचय लिखिए।

प्रश्न 8.किन-किन विधाओं में अनूदित साहित्य को देखा जायेगा। पठित अंश के आधार

प्रश्न 9.किन्ही पाँच नामों का उल्लेख करते हुए 20वीं शताब्दी के कुछ प्रमुख रचनाकारों में उनका स्थान निरूपित किजिए।

प्रश्न 10.आधुनिक संस्कृत साहित्य में क्षमाराय, बद्रीनाथ झा के योगदान का निरूपण कीजिए।

Leave a Comment