MBG-004 अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग Chapter Wise Notes

MBG-004 अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग Chapter Wise Notes

MBG-004 अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग Chapter Wise Notes IGNOU का MBG-004 पाठ्यक्रम, “अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग” भगवद्गीता का गहन दार्शनिक पक्ष सरल रूप में समझाता है। IGNOU MBG-004 अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग Chapter Wise Notes विद्यार्थियों को यह पाठ्यक्रम ब्रह्मज्ञान, आत्मा-परमात्मा के संबंध, योग, भक्ति और ज्ञान के महत्व को समझने में सहायता करता है। इसमें “अक्षरब्रह्म योग” और “राजविद्या योग” भगवद्गीता के 8वें और 9वें अध्याय पर आधारित व्याख्या की गई है।

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Chapter 1: अक्षरब्रह्म योग (अध्याय 8)

मुख्य विषयवस्तु:

  1. मरण के समय स्मरण का महत्व – इस अध्याय में बताया गया है कि मृत्यु के समय व्यक्ति जिस वस्तु का स्मरण करता है, उसी की प्राप्ति होती है। इसलिए जीवन भर प्रभु का स्मरण अत्यंत आवश्यक है।

  2. परमगति की प्राप्ति – ब्रह्म, अध्यात्म, कर्म, अधिभूत, अधिदैव तथा अधियज्ञ के तत्वों की व्याख्या इस अध्याय में की गई है। अर्जुन के प्रश्नों के उत्तर में श्रीकृष्ण इन गूढ़ विषयों को स्पष्ट करते हैं।

  3. अक्षर ब्रह्म की अवधारणा – ‘अक्षर’ का अर्थ है जो कभी नष्ट नहीं होता। यह ब्रह्म स्वरूप परमात्मा का प्रतीक है, जो अनादि, अनंत, और अजन्मा है।

मुख्य श्लोक:

“यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम्।
तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः॥”

— भगवद्गीता 8.6

इस श्लोक में मृत्यु के समय स्मरण की शक्ति को बताया गया है।

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Chapter 2: राजविद्यायोग (अध्याय 9)

मुख्य विषयवस्तु:

  1. राजविद्या और राजगुह्य योग – यह ज्ञान सबसे श्रेष्ठ और रहस्यमय है। इसे जानने से व्यक्ति परम शांति को प्राप्त करता है। इसे श्रद्धा और भक्ति के साथ ग्रहण करना आवश्यक है।

  2. परमात्मा की सर्वव्यापकता – भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि समस्त सृष्टि उन्हीं में स्थित है, परंतु वे सभी में स्थित नहीं हैं। यह अद्वैत दर्शन की गूढ़ व्याख्या है।

  3. भक्ति का महत्व – भगवान कहते हैं कि “पत्रं पुष्पं फलं तोयं” अर्पण करने से भी वे प्रसन्न हो जाते हैं, यदि वह श्रद्धा और भक्ति से युक्त हो।

मुख्य श्लोक:

“पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः॥”

— भगवद्गीता 9.26

इस श्लोक में भगवान भक्ति से किए गए छोटे से अर्पण को भी स्वीकार करते हैं।

दर्शनिक और आध्यात्मिक विश्लेषण

अक्षरब्रह्म का तात्त्विक दृष्टिकोण:

  • अक्षरब्रह्म का ज्ञान आत्मा को मोक्ष की ओर ले जाता है।

  • यह योग मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है।

  • यहाँ चेतना के उस स्तर की चर्चा होती है जहाँ व्यक्ति साक्षात्कार करता है कि वह शरीर नहीं बल्कि आत्मा है।

राजविद्या का आध्यात्मिक रहस्य:

  • यह ज्ञान भक्ति मार्ग को सर्वोच्च मार्ग मानता है।

  • राजविद्या योग में यह स्पष्ट किया गया है कि भगवान किसी जाति, लिंग, धर्म के भेद के बिना प्रत्येक भक्त को स्वीकार करते हैं।

  • यह योग समर्पण, सेवा और आस्था की गहराई को उजागर करता है।

अध्याय-वार सारांश:

अध्याय नाम विषयवस्तु संक्षेप में
8 अक्षरब्रह्म योग मृत्यु, ब्रह्मज्ञान, आत्मा की स्थिति, मोक्ष मार्ग
9 राजविद्यायोग श्रेष्ठ ज्ञान, भक्ति मार्ग, सर्वव्यापकता, समर्पण

(निष्कर्ष)

MBG-004 “अक्षरब्रह्म एवं राजविद्यायोग” पाठ्यक्रम विद्यार्थियों को आध्यात्मिक और दार्शनिक गहराइयों से अवगत कराता है। यह जीवन और मृत्यु, आत्मा और परमात्मा, भक्ति और ज्ञान जैसे मूलभूत विषयों को सरल और सुबोध भाषा में प्रस्तुत करता है। इस पाठ्यक्रम का अध्ययन करके विद्यार्थी केवल परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं होते, बल्कि आत्मिक रूप से भी समृद्ध होते हैं।

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(महत्वपूर्ण प्रश्न)

  1. अक्षरब्रह्म योग में “अधियज्ञ” की व्याख्या करें।

  2. मृत्यु के समय स्मरण की क्या महत्ता है?

  3. अक्षरब्रह्म योग के प्रमुख तत्त्व कौन-कौन से हैं?

  4. राजविद्यायोग को ‘राजगुह्य’ क्यों कहा गया है?

  5. “पत्रं पुष्पं फलं तोयं” श्लोक का आध्यात्मिक महत्व क्या है?

  6. भगवान की सर्वव्यापकता का वर्णन कैसे किया गया है?

  7. भक्ति को परमगति प्राप्ति का साधन क्यों माना गया है?

  8. अक्षरब्रह्म की प्राप्ति के लिए कौन-कौन से मार्ग सुझाए गए हैं?

  9. भगवान द्वारा अर्जुन को दिया गया रहस्यमय ज्ञान क्या है?

  10. आत्मा और शरीर का भेद MBG-004 में कैसे स्पष्ट किया गया है?

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