IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

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भारत की.  विदेश नीति.

IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व- आपसे पूछा जा रहा है विदेश नीति के बारे में भारत की विदेश नीति यानि कि फॉरेन पॉलिसी इसके मे फीचर्स बताइए यानि कि फौरन पॉलिसी और फौरन पॉलिसी के फच बताने से पहले आपको यह पता होना चाहिए की फॉरेम पॉलिसी कहते किसे हैं, सबसे पहले यह ध्यान रखते कि एक हज़ार नौ सौ सैंताली. पहले टाइम पर था टाइम पर भारत की फॉन पॉलिसी ब्रिटिश यानी की अंग्रेजों के द्वारा बनाए जा रहे.

एक हज़ार सौ के बाद इंडिया इंडिपेंडेंट हो गया और इंडिया के द्वारा सारी.

पॉलिसी पॉलिसी को कहा जाता है जब कोई एक कंट्री दूसरे कंट्री के साथ रिलेशन बनाने के टाइम देखता हैट मन फॉरेन पॉलिसी उसे पॉलिसी को कहा जाता है जो एक कंट्री एक पॉलिसी बनाता है की हम इन्ही सिद्धांतों पर या हम इन प्रिंसिपल प चलेंगे और इस प्रिंसिपल के अकॉर्डिंग जी कंट्री से हमारी बंटी है उसे बनाएंगे Otherwise  छोड़ देंगे. आप खुद देखिए एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस से पहले हो या बाद में हो हमारे रिलेशन उसआ. से बहुत अच्छे चल रहे द. बहुत अच्छा मित्र था हमारा लेकिन ऐसा नहीं की उस से हमने अपने दुश्मनी ले ली लेकिन उस सौ पैंसठ के बोर्ड के टाइम पे.

पाकिस्तान केस ने साथ दियाआर से हम दोनों से ही मिलकर रहना चाहते द लेकिन यूएसएसआर हमारा एक अच्छा दोस्त रहा.

लेकिन हम सोशलिस्ट नहीं थे हमारी तो मिक्स्ड इकमी थी कोल्ड वॉर में. हम दोनों में से किसी भी ग्रुप में शामिल नहीं हुए. और कोल्ड वॉर आपको पता है की एक हज़ार नौ सौ पैंतालीस से स्टार्ट हो चुका था और ये दोनों चाहते थे की इंडिया को हम अपने ग्रुप में शामिल कर लें, बट इंडिया अगर किसी एक ग्रुप में शामिल होता तो दूसरे से दुश्म ही लेनी पदट जाती. इसलिए इंडिया ने क्या चुना नाम डेट मेंस नॉन एलाइंस मूवमेंट यानी की भारत ने ये कहा की हम किसी ग्रुप में शामिल नहीं होंगे हम दोनों सह ही फायदा लेंगे या हम जो गलत कर रहा है उसको गलत कहेंगे, जो सही कर रहा है उसको सही कहेंगे. और कोल्ड बोरर की ये जो बर है ना इस कंडीशन को कम से कम मिनिमम करने की पुरी कोशिश करेंगे.

इंडिया के साथ लगभग पाँच कंट्री्यू मिली की इसकी शुरुआत कारी और देखते ही देखते आज इसके अंदर एक सौ बीस कंट्री शामिल है. तो नाम यानी गुट निरपेक्ष संतलन गुटों से अलग रहते हुए दोनों महाशक्तियों से अपनी सहयोग या हेल्प इकोनॉमिक हेल्प लेते हुए दोनों का क्रिटिसाइज करना. अगर वो कभी गलत भी कर दे तो अब कभी गलत करें ऐसे कर दे जैसे हम देखते हैं की जब उस ने रात पर अटैक कर दिया, सिर्फ ये का दिया की वो ऐसे हथि बना रहा है जैसे दुनिया को खतरा है. लेकिन में मकसद तेल था. हमने इ रा डिाइ. जब यूएसएसआर ने एक हज़ार नौ सौसी.

तो हमने क्रिटिसाइज किया, ऐसा नहीं है की हम यूएसएसआर पक्ष में ही बोलेंगे. अगर अच्छा दोस्त है, हां दोस्त अच्छा है, लेकिन वो गलत कर रहा है तो हमको क्रिटिसाइज करेंगे. यही हमारी फॉरेन पॉलिसी रही है. तो फॉन पॉलिसी का जो सबसे में जो पार्ट है, वो क्या है? IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

नाम डेट मेंस नॉन्लाइज मोूमेंट तो इस तरीके से ये हमारे बैकग्राउंड था जिसमें हमने यह समझा कि एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस से पहले हमारी जो पॉलिसी थी वह अंग्रेज बना रहे. द क्योंकि हम गुलाम द. इसलिए भारत तो ब्रिटिश स्टेट कहा जाता था. एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस के बाद भारत को नेशन स्टेट खजाने लग गया. और नेशन स्टेट का मतलब क्या होता है जो एक कंट्री इंडिपेंडेंट हो और उसे कंट्री की जो भी डिसीजन है वह इंटरेस्ट को देखते हुए लिया जा रहा है. जो उसे देश के इंटरेस्टमी जो जनता की जरूरत से है. और इस तरीके से हम एक इंडिपेंडेंट कंट्री बन गए. और इसका मतलब ये हुआ की अब इंडिया अपने आप में आजाद है. अपने कानून को बनाने के लिए, चाहे इंटरनल मामलों में या एक्सटर्नल मामले में.

हमारे ऊपर किसी का दबाव नहीं है. इसलिए हमें कहा गया.

नेशन स्टेट चलिए अब हम टॉप ट्रिक को स्टार्ट करते हैं. पहले समझते हैं की फॉरेन पॉलिसी का मतलब तो हमने देख लिया. जब कोई एक कंट्री दूसरे कंट्री के साथ रिलेशन बनाता है तो हम उसको विदेश बनाते हैं. देखए आपकोंप देता हूं.

एक हज़ार नौ सौ इक्यानवे से पहले.

हमारी जो पॉलिसी हुआ करती थी वह सोशलिस्ट यानी की समाजवादी पॉलिसी हुआ करती थी,

क्योंकि भारत के जो फर्स्ट प्राइम मिनिस्टर थे जवाहरलाल नेहरू जी वो सोशलिस्ट हुआ करते द डेट मेंस. उनकी जो सोच थी वो काफी सोशलिस्ट यानी की सोशल पे थी क्योंकि जब एक हज़ार नौ सौ अट्ठाईस में वो रसिया गई थी यानी की यूएसएसआर गए द. तो उन्होंने स्टोनिंग के बारे में बहुत जाना और इनको समाजवाद से प् हो गया. लगाब हो गया तो इन्होंने सोचा क्यों ना जब इंडिया आजाद होगा तो हम यहां पे भी सोशलज लेकर आएंगे. यानी की सोशलिस्ट को हम ज्यादा प्रेफर करेंगे. ऐसे इंडिया सिर्फ सोशलिस्ट नहीं था इंडिया तो मिक्स्ड इकोनॉमीक्स इंडिया की सोशलज भी और केपीिटलिज्म भी. क्योंकि सोशलिज्म थी किसकी विचारधाराआर की विचारधा में फैलाना और की एड्रो थी. वो क्या थी. कैपिटलिज्म भी था फिर दुनिया में कैपिटलिज्म. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

स्प्रेड करना इसी चीज को लेकर कोल्ड बारर हुआ. दोनों चाहते द अपनी आईडियोलॉजी के अकॉर्डिंग सभी देशों को बना देना. तू अपना ले कैपिटलिज्म.

यूएसएस सोशल ये बेहतर है और दोनों में इसी आईडियोलॉजी की जो वो थी इसको कोल्ड वॉर कहा गया. ये ऐसा बर नहीं जो युद्ध बारूद गोले बंदूक से हुआ हो. ये थी एक आईडियोलॉजिकल बोर्ड जिसमें आईडियोलॉज को स्प्रेड करना है अपनी. तो इस तरीके से कोल्ड वॉर हुआ भारत के समय शामिल हुआ नहीं. इंडिया के पहले जब प्रधानमंत्री जवाहरला नेहरू बने तो उनको ये लगा की हम इसको सोशल बना देते हैं. इसलिए भारत की जो पॉलिसी रही है स्टार्टिंग में, वो सब कुछ स्टेट कंट्रोल रही है. यानी जितने भी उद्योग धंधे होते हैं, इंडस्ट्री, बैंक, जितने भी प्रोडक्शन होगा, उनका प्राइस क्या होगा? ये सब कुछ स्टेट के द्वारा डिसाइड किया था डेट मेंस.

सोशलज्म का मतलब समाजवाद का मतलब स्टेट कंट्रोल. इसलिए ज्यादातर जो भारत की पॉलिसी हुआ करती थी, यह सेक्टर हुआ करते थे. इंडस्ट्री हुआ करती थी. वो. स्टेट के पास हुआ करता था.

और भारत ने कुछ गिने-चे सेक्टर को प्राइवेट में दिया था. बट मैनली हमारी पिचानवे प्रतिशत जो इंडस्ट्री थी वो गवर्नमेंट के हाथों में थी. तो इस तरीके से हमने ये देखा. हमारी स्टार्टिंग की पॉलिसी इसी वजह से सोशल की थी. क्योंकि इंडिया के फर्स्ट प्राइम मिनिस्टर भी अफेक्टेड द. तो इंडिया के जो पहले प्रधानमंत्री से नेहरू जी ये सोशलिज्म को ज्यादा मानते  तो इसलिए.

वो यूएसआर से भी काफी अच्छी थी. और हो भी यू ना एक हज़ार नौ सौ पिचानवे के वॉर में इसने हमारा साथ दिया एक हज़ार नौ सौ बासठ के टाइम जो चीन से बोर हुआ था उसे टाइम इस हमारा साथ दिया इकहत्तर के बोरर के टाइम से हमारा साथ दिया हमेशा इसके साथ दिया है. हमारा तो अच्छा दोस्त तो हम उसका तो थोड़ा.

ख्याल रखेंगे ही रखेंगे. और जब रसिया और यू कैन पर अटैक हुआ अभी हम पीछे हट गए. हम अगर रसिया को गलत का देंगे तो हम इस टाइम को भूल गए. क्या ऐसा नहीं कर सकता गद्दारी हमारे खून में नहीं है, हमारे न्यूट्रल है. हमने कुछ कहा ही नहीं ठीक है. आप जारा खुद देख एक हज़ार नौ सौ इक्यानवे तक तो यूएसएस आर हमारा अच्छा दोसरा लेकिन जैसे ही एक हज़ार नौ सौ इक्यानवे में यूएसआर का डिस्टइंटीग्रेशन हुआ यूएसआ. टूट गया. उसके बाद मजा नहीं ए रहार. के दोस्ती थोड़ी से कम करनी पड़ेगी.

लोगों और उसके बाद हमने उस के साथ अपनी फॉर्म पॉलिसी चेंज कर दी. अब हमने उस को अपना अच्छा मित्र बनाया क्यों? क्योंकि हमने एक हज़ार नौ सौ इकनवे में ही. अपनाया था.

 एलपीजी अपनाया था. एलपीजी का मतलब.

प्र ग्लोबलाइजेशन एक देश के क्र में को दूसरे देश के साथ जोड़ दो.

एक हज़ार नौ सौ इकनवे से पहले अगर कोई कंपनी भारत में आएगा तो उसको लाइसेंस लेना पड़ेगा. क्यों? क्योंकि भारत के अंदर सोशलजम डेट मेंस स्टेट कंट्रोल इकोनॉमी है. अब यहां पे बिना परमशंस का आप कुछ खोल ही नहीं सकते द. इसलिए अब इसको लाइसेंस राज को खत्म कर दिया है. क्या अब कुंडी मठ खटखटाओ और सीधे अंदर आओ डेट मेंस अब आपको ले ले लेना. सीधे का कोई भी कंपनी लगा सकते हो खोल सकते हो. यानी की अब जो रस्ट्रिक्शन था उसको हटा दिया गया इस तरीके से. एक हज़ार नौ सौ इक्यानवे के बाद हमने अपनी जो रिलेशन है वो उस के साथ ठीक कारी. एक हज़ार नौ सौ इक्यानवे से पहले यूएसआर के साथ हमारी संबंध सही चल रहे द बट यूएसएस टूट गया और आज वो.

रस के नाम से जाना जाता है तो ये चीज हमने यहां पे देखा. अब हम ये देखते हैं की विदेश नीति के मुख्य विशेषता क्या है भारत की तो भारत की फॉन पॉलिसी क्या रही है एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस से लेकर अब तक. और इसी फॉरेन पॉलिसी के बेस पर हम किसी दूसरे कंट्री के साथ रिलेशन बनाते हैं. और अगर हमारी फॉरेन पॉलिसी.

के अंदर जो प्रिंसिपल दिए गए हैं यानी की हम आगे किन रास्त पे चलेंगे. हमें यही बताता है हमारी फॉम पॉलिसी जो हमने डिसाइड किया हुआ है. जैसे आपको मैं एग्जांपल देता हूं एक मैन लो इंसान है. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

जो ये कहता की मैं कभी झूठ नहीं बोलता मैं सच्चाई के रास्ते पे चलता हूं कोई किसी पे दबाव डाल कोई किसी से पैेशर पे कम करवाए मैं इसका सपोर्ट नहीं करता. ये मेरी प्रिंसिपल है तो ये ऐसे ही इंसान से दोस्ती बनाएगा जिससे इसका फायदा हो रहा हो और कहीं ना कहीं जो इसकी प्रिंसिपल है वो कहीं ना कहीं इस कंट्री के साथ भी कुछ तो मैच खा रहा हूं. है ना. अब ऐसा ना है की ये बहुत शांति वाला बांदा है. ये आतंकवादी बांदा निकल गया तो दोस्ती बना ल गया तो कैसे कम चल गए ये कहीं इसको पील तो आगे चल के तोू तो ये उसी से दोस्ती बनाएगी जिससे लगता है की हान इससे हमारा फायदा है. ये आएगा मेरे साथ मुझे कुछ फायदा देगा. तो एक इंसान से मिलकर तो देश बना हुआ है . तो एक देश भी यही सोचता है हम.

अपने रिलेशन उसी के साथ बनाते हैं जिससे हमारा बेनिफिट हो रहा होता है जिस दिन बेनिफिट खत्म रिलेशन खत्म हो जाता है. यूएसएसआर से इतना फायदा नहीं दिख रहा था तब उस पे ए गए. देखो इंटरनेशनल रिलेशन के अंदर कोई भी आपका जिंदगी भर के लिए दुश्मन नहीं है जो आपका दोस्त है, कभी दुश्मन में भी बदल सकता है और जो आजका दुश्मन है. कल आपका वो दोस्त भी हो सकता है क्योंकि यहां पे कोई फिक्स नहीं है..

मूवमेंट, जो हमने स्टार्ट किया था.

हुआ यह की हम दोनों ही गुट में से किसी गुट में शामिल नहीं होना चाहते थे कि भारत को आज एक हज़ार नौ सौ सैतास, एक हज़ार नौ सौलीस में स्टार्ट हो गया था तो हम अभी नए-नए आजाद हुए थे. अगर हम किसी एक गुट में भी शामिल हो जाते तो दो जाहिर सी बात है की हमें उसे ग्रुप की बात माननी पड़ती और जो हमारी नई-नई आजादी मिली थी वो कब गुलामी में बादल जाति है हमें पता भी नहीं चला. तुम दोबारा गुलाम नहीं होना चाहते थे.

हमारी हार्थ स्टाइम बहुत खराब थी जो हमारे पास इकोनॉमिक जो भी रिसोर्सेस है या जो नेचुरल रिसोर्सेस है उनका वो दोहन करते हैं मिस उसे कर लेते हैं. हम नहीं चाहते द किसी ग्रुप में शामिल होना तो इंडिया और इंडिया जैसे चार और कंट्री टोटल पंच कंट्री ने मिलकर यह सोचा क्यों ना हम इन दोनों ग्रुप से अलग रहे और दोनों से ही हेल्प ले और हम अपनी इस पॉलिसी को या हम अपनी स नीति को गुपेक्स कहेंगे. गु मतब होता है ग्रुप और निरपेक्ष. मतलब होता है अलग रहना. क्या रहना अलग रहना. यानी हम दोनों ग्रुप से अलग है. सही को सही और गलत तो गलत कहेंगे. किसी के हमें हान नहीं मिलेंगे. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

की शुरुआत का सकते हो आप की एक हज़ार नौ सौ पचपन में हो गई थी क्योंकि कन्वेंशन जगह परे एक सम्मेलन हुआ था. कहां पे हुआ था बंदंडू में हुआ था गुट रिपेक्स को बनाने वाले टोटल पंच कंट्री द स्टार्टिंग में. आज तो इसमें एक सौ कंट्री हो गए हैं. पांचो कंट्री का आपको नाम पता होना चाहिए. पहले तो इंडिया था, दूसरा इंडोनेशिया, तीसरा गाना तो थम मिस और पांचवा योग. आपको ये पंच कंट्री का नाम याद रखना. फिर से रिपीट कर करता हूं. मैं याद लीजि. अभी.

इंडिया इंडोनेशिया.

मिस घाना यगस्िया, पांच कंट्री टोटल द में शामिल और फाइनलीेन के बाद इसमें फाउंडेशन राखी गई थी, जिसमें नीव रख दी गई थी और ऑफीशियली गुटनपक्ष्ता आंदोलन को नॉनलाइज मोूमेंट को एक सौ इकसठ में.

की राजधानीग्र स्टार्टिंग कर दी गई, एक हज़ार नौ में बन गया और ये हमारी पॉलिसी रही है की हम किसी एक ऐसे ग्रुप में शामिल नहीं होंगे जो किसी दूसरे ग्रुप से हमारेरी दुश्मनी पैदा करते हैं तो ये हमारी फॉरेन पॉलिसी का एक बहुत इंपॉर्टेंट पार्ट है और ये नाम आज भी चल रहा है. आज भी इसको खत्म नहीं किया गया है क्योंकि जी टाइम को चल रहा था उसे टाइम प. दोनों ग्रुप में जो तनातनी थी उसको कम करने के बाद कही जा रही थी और इकोनॉमिक डेवलपमेंट की बात की जा रही थी. तो इकोनॉमिक डेवलपमेंट तो आज भी जरूरी है. आज उसे टाइम दोनों ग्रुप से अलग रहने की बात थी और आज के कुछ और हो गए हैं जैसे एनवायरनमेंट के ऊपर टेररिज्म के ऊपर. ये मुद्दे किसी एक देश के लिए नहीं है. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

ये मुद्दे सभी देश के लिए है तो सभी मिलकर ये कम कर सकते हैं. तो उसे टाइम के एटमॉस्फेयर के हिसाब से कुछ मुद्दे और थे. आज के मुद्दे कुछ और हैं तो देशों का साथ तो चाहिए. इसलिए इसको खत्म आज भी नहीं किया गया है. ये आज भी है. नेक्स्ट पॉइंट क्या हैस्त्रीकरण इसको कहा जाता है. आमेंट हुआ यह था, जैसेै को स्टार्ट हुआ, पैंतालीस के, के.

टाइम से लेकर नौ सौ इक्यानवे तक ना जान. कितने लोगों ने युद्ध में बहुत पैसा खर्च किया सबसे बड़ी बात वेपंस के ऊपर बहुत पैसा खर्च करना.

इतना ज्यादा पैसा खर्च किया जा रहा था की देखते हैं हम कौन किसके पास सबसे ज्यादा हथि होगा तो इन्होंने इकोनामी भी फॉक्स ना करके वेपन से ज्यादा फॉक्स किया हथि को झकीर खड़ा कर लिया था. जिसके पास हथि होगा वो देश से डरेगा कुछ बोलेगा भी रही और इसमें अमेरिका और यूएसएसआर दोनों आगे द . और इसी कंडीशन में ब्रिटेन फ्रांस चीन, फशनर्न कंट्री तो बिल्कुल ह सी मच गई थी. आपको मैं एग्जांपल देता हूं. जरा देखिए आप इस हथिया ओ में हुआ क्या? आपको तो ये पता है की एक हज़ार नौ सौ पैंतालीस के अंदर अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पे अटैक कर दिया. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

और इस परमाणु हमले से लाखों लोगों की वहीं पर मौत हो गई. जापान को अभी तक इन घटनाओं को झेलना पड़ता है तो सबसे बड़ी घटना यही हुई थी. इसलिए सबसे पहले दुनिया भर के अंदर जो एटम ब.

अमेरिका ने बनाया और इसका जापान पर टेस्ट भी कर लिया और उसमें वो सफल भी हो गया आज के मुकाबला में उसे टाइम के परमाणु बम कुछ भी नहीं द लेकिन आज अगर किसी ने गिरा दिया दोस्तों दुनिया ने बहुत हो जाएगी आज बड़ा भयंकर भयानक घटना हो जाएगा क्योंकि उस टाइ के मुकाबला में आज बहुत हैवीटमम हो चुके हैं बहुत ज्यादा.

सबसे पहले अमेरिका ने एक हज़ार नौ सौ बना लिया अब इसके बाद एक हज़ार नौ. उस के अंदर बना लिया  एक हज़ार नौ सौ उनसठ भी बना लिया.

की चीन जिसको देखा है उसके अंदर खुजली हो जाती है उसको लगता है की दुनिया यह कर रही तो हम क्यों पीछे रहेंगे. हम भी रहेंगे दुनिया पथर में खाना खा रही है. हम पानी लेकर पहुंच जाएंगे. भंडारे के अंदर पुरी पानी भर के लेकर आएंगे. चीन उन्हें में से एक है. एक हज़ार नौ सौ चौसठ के अंदर चीन ने भी अपने पास एटम बम बना लियाो देशयंक निकले इनको लगा की और कोई कंट्री ना बना ले इसलिए इन पांच मिलकर एक हज़ार नौ सौ सड़सठ के अंदर एक कानून बना दिया जिसको कहा गया एनपीटी एनपीटी का मतलब क्या होता है? नॉन प्रोलफेशन यानी की अब कोई भी दुनिया एक कंट्री परमाणु टेस्ट नहीं कर सकता जिसने इस एनपीटी के ऊपर साइनन कर दिया. इंडिया बोलते अच्छा बटर त पांचो बड़े सा निकाल रहे हो या इंडिया इस पर सिग्नेचर किया ही नहीं. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

इंडिया के सिलेक्शन ना करने की वजह से इंडिया ने क्या किया एक हज़ार नौ सौ चौहत्तर के अंदर परमाणु टेस्ट किया. राजस्थान के अंदर हम इसमें फैल हो गए. लेकिन एक हज़ार नौ सौ अट्ठानवे में अटल बिहारी भाजपापेई. जी भारत के प्रधानमंत्री द. और हमने इसमें टेस्ट किया और हम पास हो गए. यानी आज भारत के पास भी एट बम का जोखरा है. लेकिन.

दर इस बात का है की पाकिस्तान के पास भी है और चीन के पास भी जो की भारत के पड़ोसी देश है तो ऐसा नहीं है की हम खत्म कर दे परमाणु बम हमारे पास होना ही नहीं चाहिए. अगर आपके बगल वाले कंट्री के पास है और आपके पास नहीं है तो आपको खतरा पैदा हो सकता है इन कंट्री से. ये कभी भी आपको धमकी देंगे उड़ने की. और अभी ये धमकी देंगे तो इनको पता है की भारत मारता जाता और गिनता कम है तो इस कंडीशन के अंदर दिक्कत हो जाएगी. तो ये तो हमारा ये रहा तो भारत ने अपनी फॉरेन पॉलिसी के अंदर एक नियम.  जोड़ दिया,

आर्ममेंट का मतलब होता है हथिों को प्रमोट करना, हथि को और बढ़ाना. लेकिन जब इसके आगे डेटम नस सस्त्र डि जोड़ दिया जाता है, हथिों को प्रमोट ना करना जैसे कोल्ड वॉर में किया जा रहा था. अब इतने हथि तो एटलिस्ट होने ही चाहिए की आप आते डी टाइम अपने आप से एक दूसरों को पेल सको. जब भी ऐसी घटना हो जाए लेकिन सिर्फ हथिों में ही पैसा लगाना, इकोनॉमी को बर्बाद कर देना जैसे यूएसएसआर ने किया था इकोनॉमी में बहुत कमजोर होगी स्टैंडर्ड ऑफिविंग. जो लोगों को था वो नीचे गिर गया. अब उनको ये लगा की अमेरिका तो बहुत ए गए है हमसे विद्रोह हुआ उस टूट गया. आज भी यूएसएसर के पास आठ हज़ार आटमम है.

IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व अमेरिका भी कम रहेंगे दोस्त. आज भी अमेरिका के पास दौ हज़ार सौ है और आज भी इंडिया से ज्यादा आटम तो पाकिस्तान के पास है. वो भी ह में पैसा खर्च कर रहा है. अब कटोरा लेकर भीख मांगने के वो उसके पास ए गई है. अब ज्यादा हथिों में पैसा खर्च करेगा तो इंडिया की सो बिल्कुल अलग है. हम.

डिफेंस में, हेल्थ में कोई कंप्रोमाइज नहीं करते हैं. आज इंडियन गवर्नमेंट के जो फॉरेन पॉलिसी सबसे सफल पॉलिसी में एक मानी जाती है और इंडिया में मोदी गवर्नमेंट ने साह. किसी और सेक्टर में कुछ कमी रही भी हो लेकिन फॉरेन पॉलिसी इंटरनेशनल में कोई कमी नहीं नहीं रही है. क्योंकि मोदी जी रहते हैं हमेशा फैट मोड पे तो संबंध तो बेहतर बनेगी, बननेगी. तो भारत के जो फॉन पॉलिसी है, इसका इंपॉर्टेंट पार्ट है सस्तीकररण यानी की हथिे को प्रमोट ना करना, वेपंस का प्रमोट ना करना, शांति में विश्वास रखना. इसलिए.

भारत ने से अस्तित्व यानी की को एक्जिस्टेंस और पंचशील का सिद्धांत दिया. सह स्थित का मतलब क्या होता है? अपनी के लिए दूसरे के साथ ऐसे रिलेशन बनाना ताकि आपके एक्जिस्टेंस में कोई खतरा ना हो. अब इसके लिए क्या हुआ? अट्ठाईसँप्रैल. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

एक हज़ार नौ सौ चौवन को.

एक समझौता किया गया वह चीन पंचशील समझौता.

पंच मतलब पंच सील मतलब प्रिंसिपल ऐसे.

प्रिंसिपल जो कि पांच प्रिंसिपल है और इंडिया और चैनल के बीच में हुआ. बट इंडिया ने इसको अपने फॉन पॉलिसी का पार्ट बना लिया और ये कहा गया की अब पंचशील सिद्धांत पे ही हम चलने वाले हैं यानी की हमारी जो पॉलिसी है वो पंचशील की पंचसल में क्या-क्या चलिए देखते हैं सबसे म्यचुअल रिस्पेक्ट फॉर एच आदर डेट मिंस. हम एक दूसरे का सम्मान करेंगे, हम किसी को बदनाम नहीं करेंगे, भारत ने इसको सही से अपनाया लेकिन.

चीन बज नहीं आया वो फायर करते रहता कभी लद्दाख के अंदर ए जाता है कभी उधर नॉर्थ ईस्ट कंट्रर के अंदर आसान तफने का कम करता है भूमि कब्जे में ले लेता है उसकी तो बाद ही अलग है विस्तारवाद की नीति और चाइना दुनिया के लिए जो खतरा है  अपने फॉर्म पॉलिसी के अंदर प. सिद्धांत का पहला प्रिंसिपल सेमी प्रिंसिपल क्या है म्युचुअल न इंटरफेंस यानी की एक कंट्री के किसी इंटरनल मामले में इंटरफेयर नहीं किया जाएगा. चाहे वो इंडिया का मामला हो चाहे किसी और देश का मामला हो इसलिए.

हमेशा इंडिया सेक्षिक क्या कहता है की जम्मू एंड कश्मीर का हमारा इंटरनल मामला है यूएनो या अमेरिका या कोई और कंट्रीज में अपनी ज्ञान ना झाड़े हम खुद इसको समझ लेंगे हम खुद से निपट लेंगे. जब भी ऐसा मुद्दा उठाता है कभी अमेरिका कुछ बोल भी देता है तो हम उसको शांत कर देते. हमारे इंटरनेल मामला इसमें ज्ञान मत झाड़ अपनी. हम खुद समझ लेंगे थर्ड पॉइंट का इक्वल ए म्युचुअल बेनिफिट देखो हम ऐसा कम करेंगे जिसमें सामान्य का भाव रहे और दोनों को ही फायदा हो ऐसा.

बिल्कुल ना हो की हम जो कम कर रहे हैं उसे दूसरे कंट्री को हम पहुंचे तो चैनासको कहां फॉलो कर रहा है ताइवा में देख लिया हमको. में देख लो सर का दर्द बना पड़ा है वो और पॉइंट क्या है. म्युचुअल नट. हम किसी पहले अटैक नहीं करेंगे. हमारी फॉ पॉल का पार्ट है और दूसरी.

बात ये है प् और प्रेम की भाषा से ही समझाएंगे जब तक वो समझ सकता है. एंड फिफ्थ पॉइंट का है पीसफुल को एक्जिस्टेंस यानी की शांतिपूर्वक अस्त के साथ दूसरे देशों के साथ संबंध बनाना. हम बुद्ध और गांधी के कंट्री में शांति की बात करते हैं. शांति के बाद नहीं करते तो यह हमारे पास था. पॉइंट चार.

अंतरराष्ट्रीय सद्भाव, सहयोग एवं मित्रता. हम एक कंट्री के साथ ऐसे रिलेशन बनाएंगे जिससे की सद्भाव डेट मेंस हा कॉऑपोरेशन और फ्रेंडशिप दोनों ही बढ़.

देखोग. तो दुनिया भर के देश के साथ भारत के बहुत अच्छे रिलेशन है. पाकिस्तान और चीन का हम छोड़ दे तो दुनिया के सभी देशों के साथ कहीं ना कहीं हमारे बहुत अच्छे रिलेशन है ऐसा कोई देश नहीं जो हमसे नाराज रहता हूं, मोदी.

जी, कहीं जाते हैं तो बहुत.

अच्छे से स्वागत किया जाता है एवं जो वहां के राष्ट्र अध्यक्ष होते हैं, चाहे प्राइम मिनिस्टर हो या प्रेसिडेंट हो तो मोदी जी को वो खुद एयरपोर्ट पे लेने ए रहे होते हैं. तो यहां पे सम्मान दिख रहा होता है की बहुत अच्छी बात है एंड मोदी जी का बहुत अच्छे तरीके से वहां पे वेलकम यानी की स्वागत भी किया जाता है. तो ये हमारी सफर फॉरेन पॉलिसी है जिसकी वजह से हमें ये सम्मान मिल पता है इस टाइम क्योंकि.

देखो जब भी कोई भी देश का प्रधानमंत्री आता है, नया उसकी फॉरेन पॉलिसी अलग होती है. मनमोहज सिंह की अलग थी तो मोदी जी की अलग है. अमेरिका में वेडन से पहले डो ट्रब की सरकार थी तो उनकी फॉर्म पोर्स ही अलग. थीड की सरकार. पॉलिसी अलग है या किस कंट्री के साथ रिलेशन बनाना है, किस रास्ते पर चल के बनाना है, ये सब कुछ एक देश के जो शासक हैं, विदेश.

मंत्री होंगे. प्राइम मिनिस्टर हो गए, यही डिसाइड करते हैं. बट कुछ ऐसे प्रिंसिपल होता है जो फिक्स ही होता है उसकांटग्र जैसे की हमारे लिए सारी चीज फिक्स है. आजादी के टाइम से हमने ये फिक्स कर हुआ है क्योंकि हमने ये सब देखा है. तो ये जहां में है हमारे फिफ्ँ पॉन क्या है? साधुनों की शुद्धता पर आधारित, यानी की हमारा जो गोल है, गोल क्या है, मां लो की हम शांति चाहते हैं या.

चाहते हैं यूएनो का परमानेंट मेंबर बनना तो हमने इसके लिए जो साधन अपनाया है वो कभी भी हमने मारकाट, युद्ध यह सब हमने कभी नहीं किया हमेशा शांतिप्रिय देश है और शांति की बात करते हुए हम यून अपॉइंटमेंट मेबोरी बनना चाहते है और दुनिया भर के अंदर विकास की बात करते हैं. यानी की हमारी अपनी पहचान है और ये सब हम करते हैं साधन की शुद्धता के साथ. तो जो हमने गोल सेट किया हुआ है उसे गोल को प्राप्त करने के लिए जो हमारा साधन है वह बिल्कुल सही है वो गलत नहीं है. इसलिए हमारा जो भी तरीका होता है वो हमेशा सही होता है. हम.

अपने देश के इंटरेस्ट को देखते हुए आगे कम करते हैं. छः पॉइंट का रंग्वद का विरोध देखो अंग्रेजों का टाइम पे हमने देखा था कहीं ना कहीं काले बरे में उन्होंने भेदभाव किया और साउथ अफ्रीका की जो ये बात हैर्टट की बात है यह कहने कहीं हमारे देश के अंदर भी आई गई थी वो कालों को कुछ समझते नहीं द. वो कहते द सि्विलाइज बनाने के लिए हम हैं जो की बिल्कुल सरा असर गलत रहा इसलिए हमने रंग बीच का बिल्कुल विरोध किया. आपने फोररेन पॉलिसी के अंदर जो भी कंट्री ऐसा करता है हम उसको बिल्कुल एपोज करते हैं. सात.

क्या है विश्व शांति में विश्वास रखते हैं हम दुनिया भर के अंदर पीसने से पहले बुद्ध गांधी के देश से हम शांति फिलाने आए हैं. दोस्त कभी अ शांति की बात नहीं करते. ये फॉर्म पॉलिसी का पार्ट है. हमारा आठ पॉइ. क्या है हमारा नस्लवाद का विरोध करना? हमने रेसिजम को बिल्कुल अपोज किया हुआ है. अपने फॉन पॉलिसी के अंदर अगर कोई नस्ल के आधार पे किसी के साथ भेदभाव करता है तो हम इसका अपोज करते हैं. जैसे की साउथ अफ्रीकन यानी की अफ्रीकन कंटी के अंदर देखा भी गया है. इसके बाद पॉइंट क्या है? हमारा नौाइथ पॉइंट आ में विदेशी हस्तक्षेप का विरोध करना अगर.

इंडिया के इंटरनल मामले में वेस्टर्न कंट्री या कोई और कंट्री इंटरफेर करता है तो हम इसका अपोज करते हैं. अगर ऐसे ही अगर वेस्टर्न कंट्री किसी और कंट्री के मामले में इंटरफेयर करता है तो भी हम इसका अपोज करते हैं क्यों? अगर हम अभी शांत बैठ गए तो कोई हमें इंटरफेयस करेगा तो ये कंट्री भी शांत बैठा रहेगा. हमारे माउंट में भी नहीं बोलेगा इसलिए.

एक दूसरे के अंदर कोई भी इंटरफेयर नहीं करेगा. ये हमारा फॉन पॉलिसी का एक पार्ट है. दसइ का है राष्ट्रकल की सदस्यताटंस एक हज़ार नौ सौ सैंतालीस में जब.

इंडिया आजाद हुआ, तो ब्रिटेन ने जिन- जिनिन देशों ग्राम बनाया हुआ था.

को पास एक ग्रुप बनाकर रखने के लिए उसने कॉमन बेल् नामक संगठन बनाया था. यानी की राष्ट्रकूल बनाया था ताकि इसके अंदर वो कंट्री शामिल रहे जो एक. IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

टाइम तक ब्रिटिश स्टेट मेंस अंग्रेजों के गुनाम हुआ करते द जस्ट यूनिटी बनाए रखने के लिए मैसेज देने के लिए. इसका मतलब ये नहीं था की अगर इसमें शामिल हो जाएंगे, अंग्रेजों का संगठन है तो हम फिर से गुलाम हो जाएंगे इसका मतलब ये नहीं था, इसलिएने नेहरूजी ने ये फैसला लिया की हम राष्ट्रकूल सदस्यों के मेंबर बनेंगे और इसके बनने का फायदा ये भी था की दुनिया भर के अंदर हमने साम्राज्यवाद के अगेंस्ट में या उपनिवेश के अगेंस्ट में अपनी बातें भी राखी है और अभी तक हम इसके मेंबर हैं नेक्स्ट पॉइंट क्या है, ग्ह पॉइंट ओ उपनिवेशवाल और साम्राज्यवाद का विरोध करते हैं. हम और कॉमन बेल के अंदर हम शामिल होकर हमने यही किया है क्योंकि.

ब्रिटिश ने जो किया था एक टाइम पे वो बिल्कुल गलत था और ये चीज हम उसको एहसास दिला सकते हैं. जितने भी कंट्रोल्स पे शामिल है तो हमने एक पार्ट बनाया अपने फॉन पॉलिसी का. उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद.

बाद का मतलब क्या होता है जब कोई भी एक ताकतवर देश.

कमजोर को गुम बना ले, इकोनॉमिक रूप से और कल्चर रूप से और पॉलिटिकल रूप से तीनों रूप से गुलाम बना ले. और साम्राज्यवाद का मतलब क्या होता है? एक ताकतवर देश, किसी.

कमजोर देश को गुलाम बना ले, पॉलिटिकल रूप से, कलचरल रूप से और इड़ॉमीिक रूप से तीनों रूप से गुलाम बना ले और जी कंट्री ने जिसको गुलाम बनाया है वो उसे कंट्री के अंदर जाकर रहने भी ग जाए. तो अंग्रेजनों ने हमको अपनीव भी बनाया, साम्राज्य भी बना लिया क्योंकि वो हमारे देश के अंदर आखिर रहने भी लग गए द. शिमला के अंदर, कोलकात्तता के अंदर, आगे वो रहने लग गए द. तो इस तरीके से हमने इसका पूरा अपोज किया. यानी की वो जब कोई ताकतवर कंट्री यानी की कोई पावरफुल कंट्री को किसी कमजोर देश से गुलाम बना रहा है तो ये सरसना गलत है क्योंकि सभी इंसानों को आजाद ऊपर से नेचर नहीं बनाया है तो किसी भी देश के पास ये राइट नहीं है की वो किसी देश को गुलाम बना ले अपना क्योंकि.

एक टाइम प एशियाई अफ्रीकन और लैटिन अेरिकन के कंट्रीजन झेल हुआ भी है एंड बारह पॉइंट क्या है सभी से मित्रता डेट मी फ्रेंडशिप विद जोल्ड हमारा ये पॉलिसी है. हम दोस्ती का हाथ बढ़ते हैं, दुश्मनी का हाथ नहीं बढ़ते हैं. अगर कोई पीछे से हमारे पर हमला करता है तो उसका बदला भी जबरदस्त तरीके से लेते हैं. पाकिस्तान, चीनना या और भी कंट्री. ये जानते हैं हमारे बारे में. और ये चीज जरूरी भी है सिख लेना. क्योंकि इतिहास के अंदर हमने ये देखा है, हमेशा भारत के ऊपर पीछे सवार हुआ है और इसका हम मु तोड़ जवाब नहीं देंगे तो हमेशा हम को झेलना होगा. तेरह पइ क्या है संयुक्त राज संघ में आस्था? देखो.

बना था एक हज़ार नौ सौ पैस के अंदर चौबीस अक्टूबर को तो उस टाइम से यूनो की जो पॉलिसी रही है, हमने उसका सपोर्ट भी किया है और भी रखी है. और इसीलिए हम सिक्योरिटी का आंसिलिंग के अंदर परमानेंट मेंबर के दावेदार भी हैं. चीन को बनाने वाले भारत है तो वह हम क्यों नहीं है? आज हमारे पास दुनिया के लार्जेस्ट डेमोक्रेटिक कंट्री हैं, लार्जेस्ट पापुलेशन भी हमारे पास है. डिसर्ममेंट की बात करते हैं, एंड डेवलपमेंट की बात करते हैं, बिल्कुल प्रोग्रेसिव कंट्री है. क्यों नहीं मिलना चाहिए? बट.

चीन वहां पे एक्शन दल देता है ब्यू तू लगा देता है . इसलिए हमने शांति की बात की है और यूएनो की नियमों आस्था रखते हैं तो जिस तरीके से यूएनो की बात आज कोई मानता नहीं है या वेस्टर्न कंट्री वाले पूरे धज्जियां उदा देते हैं चीन को ये देख लो अब भारत.

आगे क्या ही करें अब वो जमान तो रहेंगे ना कोई आपके एक गल पे थप्पड़ मार दे, दूसरा गल कर दो, एक गल पे थप्पड़ करने के जैसे हाथ उठाया उसका हाथी कैट दो. वही वाले जमाना रहे तो आज कंपटीशन ज्यादा है. अब एक कंट्री अपने आप को सुपर पावर बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है. अब चीन को देख लो तो इस तरीके से हमारे विदेश नीति का जो क्वेश्चन है वो खत्म होता है इसमें.

हमने जो भी यहां पे पॉइंट्स देखें हैं ये सारे पॉइंट्स हमारे विदेश निधि यानी की फॉरेन पॉल का ये बहुत इंपॉर्टेंट पार्ट है और आज भी हम इसी पॉलिसी पर यानी कि आज हम इसी नियम पर चल रहे हैं पहले तो बता डन आपको मैं की जो फॉरेन पॉलिसी है यह तो है नहीं की अपने आप बन जाएगी. इसको कोई ना कोई इंसान ही बना रहा होता है और ये.

इंसान किसी पॉलीटिकल पार्टी से बिलॉन्ग करता है इसलिए हम का सकते हैं की पॉलीटिकल पार्टी का भी कंट्रीजन होता है पॉलिसी मेकिंग के अंदर. तो इसको हम पहले यूं समझते हैं कि राजनीतिक दल और विदेशीय नीति यानी की पॉलिटिकल पार्टी एंड फौरन पॉलिसी देखो. लोकतंत्र के अंदर पॉलिटिकल पार्टीज होती हैं. और पॉलिटिकल पार्टी का ही कंट्रीब्यूशन होता है. जब गवर्नमेंट बनाती है तो पॉलिसीज बनाने में अगर हम आजादी से पहले की बात करें, भारत एक डेमोक्रेटिक कंट्री है जिसके अंदर अगर दो दल भी होगी तो एक दल तो गवर्नमेंट में ही होगी. वो एक जला पोजीशन में होगी और भारत तो मल्टी पार्ट सिस्टम में. भारत के अंदर तो जहां पे.

एक गवर्नमेंट में बाकी सब अपोजिशन में है तो इनका क्रिटिसाइज भी किया जाता हैेशल ध्यान भी रखा जाता है अ पोजीशन के द्वारा भी और गवर्नमेंट भी अपना सही काम कर पाती है. पहले हम ये समझते हैं भारत की विधि नीति को प्रभावित कौन-कौन कर सकता. अब यानी की इफेक्ट कंट्रीज फॉरेन पॉलिसी देखो इंडिया को फॉरेन पॉलिसी अपनी जैसे की उस है तो उसका कैसे संबंध था इतिहास में और अब कैसा रहेगा. इन सभी चीजों को देखते हुए इन फ्यूचर में और कै इससे बेनिफिट हो सकते हैं. इन सभी चीजों को देखते हुए हम अपनी उस से पॉलिसीज बनाएंगे यानी की फॉर्म पॉलिसी ध्यान में रखते हुए बनाया जाएगा. और जैसे ब्रिटेन भी हो गया या यूएसएसआर हो गया, जब फ्रांस हो गया, हम सभी.

ईरान से कच्चा तेल खरीदता है और यही तेल.

हमारी आपूर्ति को पूरा करता है भारत के लिए बहुत ज्यादा इंपॉर्टेंट रखता है क्योंकि जब अमेरिका ने ईरान पे प्रतिबंध लगाया तो इससे थोड़ा डर कायम हुआ. की अब क्या हुआ तो डाउट तो थोड़ा होना ही था इसलिए भारत ने कोई अल्टरनेटिव पार्टनर भी ढूंढना स्टार्ट यहां पे कर दिया था।. पश्चिम एशिी देशों में ईरान किए प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता क्योंकि ईरान अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को बनाए रखना चाहता है. अमेरिका के विरुद्ध क्योंकि अमेरिका फिर से अफगानिस्तान में नए इसलिए वो चाहता है की तालिबान रहे. अफ़गा़निस्तान के अंदर देखो इजराइल, सऊदी अरब और अरब अमीरात इन तीनों ने अमेरिका के साथ.

दोस्ती बना रखखी है और इसी दोस्ती का ईरान विरोध करता है और अमेरिका ने इन तीनों देशों के साथ मिलकर एक ग्रुप बना लिया जिसका नाम था एस मिडल ईस्ट सिक्योरिटी.

लेकिन भारत के दोनों परियों के बीच में बैलेंसना बहुत बड़ा चैलेंज हैम ऐसे ये जो मैंने आपको तीन कंट्री बताया इन कंट्रो के बीच में और ईरान के बीच में ब.

नेशनल इंटरेस्ट को सबसे ऊपर रखें क्योंकि तेल की आपूर्ति है वह यहीं से होगी और जहां से भी.

आपको फायदा होता है वहां पर रिलेशन आपको बनाकर ही रखना चाहिए. और आईआ. डेटम इंटरनेशनल रिलेशन के अंदर जिओ पॉलिटक्स का बहुत बड़ा पार्ट भी है. चलिए ये था हमारा नेक्स्ट क्वेश्चन आई होप. आपको ये समझ में ए गया होगा. पश्चि मेंशाई के देश भारत के लिए काफी इंपॉर्टेंट है. उनके साथ रिलेशन हमारे पहले से बेहतर है और अभी भी बेहतर चले ए रहे हैं. भारत कभी भी इनके साथ नहीं बिगड़ा है. नेक्स्ट क्वेश्चन क्या कहता है की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद और इससे जूझने के लिए भारत की तैी को समझाना आपको इंटरेस्टज्म को लेकर भारत ने अपने क्या प्रिपरेशन किया हुआ है? चलिए हम पहले इसको समझते हैं. देखो अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद एक देश का मुद्दा नहीं है, सभी देश का मुद्दा है ये आतंकवाद.

से कोई एक देश अकेला नहीं लाड सकता क्योंकि आतंकवाद से सभी देश प्रभावित थे. आतंकवाद कभी.

देश और देश देकर नहीं मारता. जहां से उनको फायदा होता है वहीं प जाके खून खराब करना स्टार्ट करते हैं. जब न ग्ह.

की घटना हुई जब से अमेरिका की आंखें खुली आतंकवाद को लेकर क्योंकि जिन लोगों को वो पाल जा रहा था वही लोग आतंकवाद के रूप में अमेरिका के भी गले के कांटे बन गए।

अमेरिका भी उन्हीं में से एक है. ये चाहता है की अशांति बना रहे तभी तो इनके हथि बिकेंगे।. दुनिया में शांति फैल जाएगी तो उनकेके हथि कौन खरीदेगा अब आप चार बेचे के लिए अशांति होना चाहिए. यही चीज मैं तो यहीं से स्टार्ट होता है. दर का बिजनेस आतंकवाद के विरुद्ध एक अंतरराष्ट्रीय मोर्चा बनाया गया और इसी मोर्चे के तहत हम आतंकवाद से लाड सके. ये कहा गया तो क्रिएटिंग अ इंटरनेशनल फ्रंट अगेंस्ट टेरिज्म और इसके अंदर काफी सारे संगठन बनाए गए हैं. जैसे.

की पहले तो हमारा यूएनो ही है. और इसके बाद अमेरिका या वेस्टन कंट्रीज के साथ मिलकर इंडिया का भी स्टैंड ऐसा हो गया कि हम आतंकवाद के खिलाफ बोलते हमेशा जब भी बोलते हैं या इंटरनेशनल मंच पर बोलने का मौका मिलता है. इंडिया जब रिप्रेजेंट करता है अपने आप को. तो हम आतंकवाद के अगेंस्टस्ट ही हमेशा से रहे. क्योंकि भारत ने खुद इसको झेला भी है. भारत के बगल में ही आतंकी कंट्ररी भी है. भारत को सही से समझ सकता है. क्योंकि जम्मू एंड कश्मीर के अंदर अशांति फैलाकर पाकिस्तान के मंसूब को हम अच्छे से जानते हैं. और भारत शुरुआत सहीमेंट की बात भी करता रहा. शांति की बात करता रहा. और आतंकवाद का मुद्दा सिर्फ एक देश का ना होकर सभी देशों के होने की वजह से. इसमें सभी देश.

को मिलकर पार्टिसिपेट करना चाहिए. पहले हम यह बात करते हैं कि भारत ने क्या तैी कर रखी है इन आतंकवादियों से लड़ने के लिएो. दौ हज़ार आठ में जब मुंबई अटैक हुआ उसे टाइम से भारत ने अपनी इंटरनल सिक्योरिटी को लेकर बहुत बड़े कदम उठाए क्योंकि आतंकवाद से लड़ने के लिए एनआईए और राष्ट्रीय खुफिया एजेंसी के साथ-साथ एनएसजी के अंदर सुधार किए गए जिससे कि हम आतंकवादियों से लड़ सकें।. सेंट्रल और स्टेट गवर्नमेंट ने खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के बीच करीबाईैंस.

जिससे आतंकवादियों से लड़ा जा सके. इसके अंदर आईबी हो गया. ये रो हो गए. इनका में मुद्दा क्या होता है की अपने देश के बॉ के बाहर से खुफिया एजेंसी यानी कि जो देश केगेंस्ट में चल रही है जिसमें आईबी और इसके अंदर रोग का बहुत बड़ा कंट्रीब्यूशन होता है. खुफिया और सुरक्षा एज संभावित आईआई भारतती की पहचान करते हैं. क्योंकि आज भी पाक कोकोपाइड जो कश्मीर है, जहां पर उसने अवैध रूप से कब्जा किया हुआ है, वहां पे ऐसे काफी.

रहता है और इस भारत ने इसकी तैी की. हुई है खुश के साथ मिलकर क्योंकि भारत आ.

सुरक्षा की चुनौतियों से निपटने के लिए तै है. इसलिए.

सशस्त्र पुलिस वालों की शक्ति में भी बढ़ोतरी कर दी गई है. चेन्नई, कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद में एनएसजी.

एक हब बना दिया गया है जिससे की इनको कोई दिक्कत ना आए. जब भी इनको विमान की जरूर पड़े कोई भी हेलीकॉप्टर या हवाई ज पड़े तुरंत ऑन डी.

स्पोर्ट इनको यह मिल जाए यानी की मैं इमरजेंसी के लिए पूरा इनको पावर दिया गया है और जो अपवासशनन की जो समस्या बाढ़ रही है एक देश से दूसरे देश में जाने की समस्या सरकार इस प कड़े कदम उठा रही है क्योंकि कभी बर क्या होता है इसका मिस उसे करके कोई आतंकवादी लोगों को घुस आते हैं. जैसे की हम देखते हैं की बांग्लादेश या नेपाल से या कुछ भारत से जो बॉर्डर के लगे हुए देश हैं उन कविक कुमारर गलत लोग भारत में ए जाते हैं. गलत मसबे के साथ आतंकी है या अशांति फैलाने के लिए सीमा की घेराबंदी फ्लड लाइट आधुनिक या उसे तकनीक निगरानी के लिए हमने यूज किया हुआ है. जैसे कि हम आतंकवादियों पर निगरानी रख.

सके हम अपने डिफेंस सिस्टम को और मजबूत कर रहे हैं इसराइल फ्रांस और.

रसिया के साथ मिलकर जिससे की हमारा जो डिफेंस सिस्टम है और वो मजबूत हो सके. देखो इंटेलिजेंस सेटअप को हम अपग्रेड करते जा रहे हैं जिससे की जो तटीय सुरक्षा हमारी वैसे राज्य जो नदियों या समुद्र से घिरे हुए हैं हम वहां पर नजर रख सके जैसे कि उस रास्ते से कोई भारत में एटर ना हो जाए. दौ हज़ार आठ और दौ हज़ार बारह में गैर-कानूनी गतिविधि रोकतम अधिनियम, एक हज़ार नौ सौ सड़सठ में अमेंडमेंट कर कर इसको और.

कठोर बना दिया गया की अगर कोई ऐसा पाया जाता है तो उसको दंड बहुत तगड़ा दिया जाएगा जिससे की लोग.

आतंकवादी प. जब इ याकू में उनको फांसी दी गई इससे लगा कि नहीं अब प्रकार का स्टैंडू क्लियर हो चुका है. बड़े को भारत के अंदर जो आतंकी गतिविधि है वो कम जरूर हुई है. बट रुकी नहीं है. इसी पे हमें ध्यान देना है. और सरकार की और अध्यक्ष की सरकार हमेशा लट प रहती है. अपनी सुरक्षा को लेकर सरकार ने नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड की स्थापना आतंकवाद और आंतरिक सुरक्षा खतरों से निपटाने के लिए ही किया है. तो आपको ध्यान रखना यह नेशनल इंटेलिजेंस ग्रिड जो की आतंकवाद के लिए सरकार ने बनाया हुआ है इसे निपटने के लिए आतंकवाद से निपटने के लिए आतंकवाद के प्रति अपनी जीरो टोनस नीति के हिस्से के रूप में भारत ने अलग-अलग बहुपक्षiीय तथांच पर आतवाद के वि. पोषण सहित क्रॉस बॉर्डर.

आतंकवाद के मुद्दे को उठाया है जैसे की आप देखते हैं जब पाकिस्तानी फंडिंग देता है, जिन इनको जो फंडिंग मिलती है ये कहां से मिलती है, इनके फंडिंग को रोका जाए. भारत के नोटबंदी का एक रीजन ये भी दिया गया था की आतंकी फंडिंग में कमी ए जाएगी, उनको पैसा नहीं मिलेगा. तो ये सारे वो पॉइंट्स हैं जिससे हमने ये पता लगाया की भारत ने अपने आतंकी गतिविधियों को रोकने के लिए तैी क्या कारी हुई है. ठीक है यहां पे. चलिए अब हम देखते हैं नेक्स्ट क्वेश्चन संकट प्रबंधन क्या है. यानी की.

व्हाट इसे डी क्राइसिस मैनेजमेंट. मैं पहले आपको ये समझा देता हूं. ये जो मैं आपको नोट्स दिखा रहा हूं, इसमें जो क्वेश्चंस दिखा रहा हूं, ये आपके, किसी.

एक पर्टिकुलर चैप्टर से क्वेश्चन है ये. जितने भी मैं आपको क्वेश्चन दिखा रहा हूं आपको उन्हें चैप्टर पर ज्यादा फॉक्स करना है. अब ये क्वेश्चन डायरेक्ट या इनडायरेक्ट या घुमा कर या उन चैप्टर में से कोई सा भी क्वेश्चन आपसे पूछा जा सकता है. ये क्वेश्चन वो है जो पिछले साल के पेपर में आए हुए हैं. अगर आप इन क्वेश्चन को समझ लेते हो तो चैप्टर का थीम आपको समझ में आ जाएगा. तो इसलिए.

आपको मैं इन सारे क्वेश्चंस को हल्के में बता दे रहा हूं. तो संकट प्रबंधन कैसे कहते हैं? क्रिस मैजमेंट क्राइसिस के टाइम प. अगर मैनेजमेंट करने की समस्या पैदा हो जाति है तो वो कैसे किया जाएगा? अब मां लो की एक देश के अंदर ग युद्ध हो गया, सिविल वर हो गया जैसे श्रीलंका में क्या होता है तमिल और सििंगलों के बीच में हो गया था. अब ऐसे ही.

क्राइसिस से बचाने के लिए सरकार ने क्या तैी कर रखी है। तो.

बता इस क अंदर सरकार की स्ट्रेट बतानी है मान लो की अगर कोई कंट्री है तो वो कंट्री कैसे.

तैी करता है. लेकिन.

तो इस सरकार की स्टेट सरकार की पॉलिसी ए इस टाइम.

सरकार क्या स्टैंड लिया हुआ है, सरकार के रिलेशन बताना है और इस क्वेश्चन के अंदर मैनेजमेंट के लिए सरकार कौन-कौन से टूल्स का उसे करती है. टूल्स का मतलब यहां पे एजेंसीज है. सरकार के कौन-कौन से वो एजेंसी हैं जिससे सरकार इनको मैनेज करती है. तो यह क्वेश्चन काफी संकट प्रबंधन पर बता सकते हैं. नेक्स्ट क्वेश्चन क्या है? मानवीय हस्तक्षेप क्या है? मानवीय हस्तक्षेप का मतलब क्या होता है. अब देखोगे की मानव के पास एक इंसान के पास मानव अधिकार मिला हुआ है. अगर इस.

मानव अधिकार का होता है. अगर इनका उल्लंघन होता है तो इन उल्लघन के मामले में सरकार ने क्या बंदोबस्त यानी सरकार ने क्या इंतजाम किया हुआ है. उनएनो के द्वारा में दुनिया भर के जो मानव अधिकारों का उल्लघन होता है उसे पर नजर बना के रखा जाता है जिससे की मानवी हस्तक्षेप ना हो और मानव के अधिकारों का उल्लंघन ना हो में क्वेश्चन दे दिया जाता है. नेक्स्ट क्वेश्चन क्या है की.

जलवायु परिवर्तन पर क्योटो बैठक की महत्व को बताइए. यानी, क्रोटोप्रोटोकॉल के बारे में आपको बताना है. देखोोटो प्रोटोकॉल यूनो की एक एजेंसी है जिसका नाम हैनफ.

नेशन फ्रेमर कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज. तो क्लाइमेट चेंज को लेकर एक ये एग्रीमेंट था जो कहां पर हुआ था. यह हुआ थापान के एक सिटी, एक शहर.

सौ सत्तानवे और इस परन करने वालों ने यहग्री किया था कि हम जो ग्री हाउसेस जो गैस है उसका जो उत्सर्जन है वो कम से कम करेंगे मिनिमम करेंगे जिससे की जो क्लाइमेट चेंज होता है या जो तापमान जो बढ़ता है वो कम से कम कम हो मिनिमम हो बिल्कुल एक हज़ार नौ सौ सत्तानवे में ये हुआ और भारत ने इसके ऊपर दौ हज़ार दौ में सिग्नेचर किया था तो ये दौ हज़ार आठ से दौ हज़ार बारह तक इसका पहला स्टेज माना जाता हैनी क्र प्रोोकॉल जिन्होंने सिगनेचर किया है उनको दो चरणों में डिवाइड कर दियाेगा पहले चरण ये चरण था यानी फर्स्ट पेज में ये कहा गया कि दौ हज़ार आठ से लेकर दौ हज़ार बारह के बीच में जिन्होंने क्योटोप्रोटोकल पर सिगनेच किया है सभी कंट्री हरित गृह गैस उत्सर्जन कि गैस है, इसकी पाँच.

प्रतिशत तक मात्रा कम कर देंगे उत्पादन करने की यानी की ऐसा कुछ करेंगे यानी की वो ऐसा कम करेंगे जिससे की इनका जो उत्सर्जन है ग्रीन हाउसेस गैसेस का वो पाँच प्रतिशत तक कम हो जाए और जिसका दूसरा चरण जो सेक है वो कब से है दौ हज़ार तेरह से लेकर दौ हज़ार बीस तक पाँच तक कम करना था और अब ग्र हाउसेस गैसे की जो उत्पादन किया जाता है अब उसको अठारह प्रतिशत तक कम करना है तो ये कहा गया थाटो प्रोटोकॉल के अंदर पहले पाँच प्रतिशत कम करना है. ग्रीन हाउसस यानी दौ. पाँच प्रतिशत तक उसके बाद दौ है जो कब कितना परसेंट अठारह प्रतिशत यानी ग्रीन हाउस अठारह.

प्रतिशत की कमी करनी है तभी ऐसा लगेगा की हमें पेड़ों को लगाना है हमें पेड़ों को काटना नहीं है और हमें जो शुद्ध गसे हमें उनका यूज करना है जिससे कि हमारेवार पर नेगेटिव इंपैक्ट ना पड़े. यह थाटो प्रोट.

साम्यवादी उपरांत समाज पर टिप्पणी लिखिए. यानी की साम्यवादी का मतलब क्या होता है पहले आपको ये बताना है और इसके द्वारा एक समाज कैसे बन सकता है. तो पहले आपको इसको डिस्क्राइब करना है. चलिए आपको मैं समझा देताँ साम्यवाद का मतलब क्या होता है सा. का मतलब क्या होता है. इससे पहले यह समझ कि एक हज़ार आठ सौ अठारह में एक ऐसे इंसान का जन्म हुआ जिसका नाम था काल मार्क्स. कॉल मार्क्स ने ही दी. इसको कहा जाता है साम्यवादी. इससे पहले समाजवाद की कंडीशन है. समाज.

आपको आपको समझ में इसलिएत क्या होता है ऐसी सोसाइटी जहां पर कंट्रोल होगा यानि कि प्रोडक्शन के रिसोर्सेस पर, सारे इंस्टीट्यूशंस पर या जितने भी बैंक है, इंडस्ट्री है, उन सबके ऊपर स्टेट का कंट्रोल होगा. कौन सा प्रोडक्शन करना है, कितने प्राइस पर बेचना है, ये सब गवर्नमेंट डिसाइड करती है. इसलिए गवर्नमेंट रेगुलस कहा जाता है. सब के हाथ में होगा. प्राइवेट सेक्टर नहीं होगा यहां पे और इस तरहके से ही हो गया हमारा समाजवाद और यहां पर. लेकिन स्टेट होता है तो कॉलमास कहता है की हमें स्टेटलेस सोसाइटी बनाना हैसटी.

होता है और गरीबों का शोषण होता है इसलिए स्टेट को खत्म करना है हमें और क्लास को खत्म करना है. क्लास का मतलब्लसटी क्लासस को खत्म करना है. तो जो सोशलज की कंडीशन होती है इसके अंदर क्लास खत्म हो जाएगी. अमीर गरत खत्म हो जाएंगे और स्टेट के ऊपर सभी मजदूरसने का राज हो इस त. समाजवाद के अंदर. लेकिन जब ऐसा लग की अब सब लोग शासन करना सिख गए हैं तो स्टेट की कोई जरूर नहीं है तो आगे चल के स्टेट को खत्म कर दिया जाएगा. अब ऐसा समाज बनेगा जिसको कहा जाएगा साम्यवादी. तो पहला होगा सोशलज्म. अब दूसरा कंडीशन आएगा कम्युनिेशन डेट मेंन. साम्यवादी साम्यवाद में क्या होगा स्टेटलेस.

और क्लासलेस यानी की स्टेट को खत्म कर देंगे और क्लास को भी खत्म कर देंगे. इस कहा जाएगा स्टेटलेस सोसाइटी और क्लासस सोसाइटी. हमारा साम्यवादी समाज. अब हम बात करते हैं साम्यवादी समाज के अंदर होता क्या है. साम्यवादी समाज के अंदर ना ही स्टेट होगी, ना ही कोई राज्य होगा और ना ही कोई क्लास होगी, कोई व होगी या कोईमी गरीब होगा कोई होगी किसानद. सब अपना शासन खुद करेंगे यहां पर कोई पूंजीपति नहीं होगा सभी के पास.

इक्वल तरीके से जो प्रॉपर्टी है, जो रिसोर्सेज है, वो डिस्टटी्रीब्यूशन कर दिया जाएगा. ताकि समाज के अंदर ऐसा मानता.

ना आए तो इसके ऊपर मैंने वीडियो बनाया हुआ है. साम्यवाद के ऊपर आई होप. आपको पता होगा तो ये था साम्यवादी समाज नेक्स्ट क्वेश्चन क्या है की संयुक्त राष्ट्र में गैर सरकारी संगठनों की भूमिका और योगदान को समझाइए. आपको यह बताना कि यूनो क्या की स्थापना चौबीस अक्टूबर एक हज़ार नौ सौ पैलीस में हुई थी. इसलिए हुई थी ताकि कोई थर्ड वर्ल्ड वार ना हो. क्योंकि सेकंड वर्ल्डर को रोकने में लीगिन फेल हो गया था इसलिए लीग.

को खत्म कर दिया गया था. एक हज़ार नौ सौ उनतालीस में जब वर्ल्ड वर सेकंड स्टार्ट हुआ तोलीगोेशन खत्म हुआ. उसके बाद एक हज़ार नौ सौ पैंतालीस में यूनो बनाया गया ताकि वर् थर्ड ना हो जाए. लेकिन तो हो गया था.

ये रोकने के लिए वर्ल्ड व में सिक्योरिटी कायम करने के लिए इसने बनाए रखने के लिए पूछा. आपसे ये गया है की सहयुक्त राष्ट्र में गैर सरकारी जो संगठन है इनकी क्या भूमिका है? ऐसे काफी सारे गैर सरकारी संगठन यूएनओ के अंदर जिनकी बहुत बड़ी भूमिका अगर देखा जाए तो संयुक्त राष्ट्र के्ट के अंदर यह कहा गया है जो अनुच्छेद आ भी कहा गया है की गैस सरकारी संगठन आर्थिक और सामाजिक काउंसिल के कार्य में परामर्श डाता के रूप में भाग ले सकते हैं. यानी की यूएनो के जो भी इकोनॉमिक सोशल एजेंसी है उसके अंदर यह पार्टिसिपेट कर सकते हैं लगभग नौ सौ तीस गैर सरकारी संगठन, इनमें से प्रमुख गैर सरकारी संगठन इंटरनल फेडेशन ऑफ.

रेड क्रॉ सोसाइटी दे इंडियन कमीशन ऑफ ज्यूररिस्ट ए नेक्स्ट कौन सा है, रीजनल काउंसिल फॉर ह्यूमन राइट्स इन एशिया और ह्यूमन राइट स्पोच ये भी एक संगठन है जो की यूएन की हैं बट इसको अमेरिका में बनाया गया था.

जनस विभाग और गैर सरकारी संपर्क सेवा एनजीएलएस के माध्यम से बड़ी संख्या में ग्ह सरकारी संगठनों का प्रभाव बढ़ता जा रहा है. इनमें से ज्यादा संगठन का की अगर कहीं पर ह्यूमन हो रहा है तो उनके ऊपर.

मीडिया भर का ध्यान दिलाना, यूएनो का ध्यान दिलाना, फोकस करवाना ताकि उनका जल्दी से सॉल्यूशन हो सके. तो बेलन का काम क्या है? मानव अधिकारों पे कम करना तो इस तरीके से ये मानव अधिकारों की मॉनिटरिंग करती है ताकि उनका वायलेंस ना हो सके जैसे मिडिल इसका इंटर के अंदर कभी एक बार देखा जाता है या अफ्रीकन कंट्री के अंदर देखा जाता है बट ये घटना सीचट का टाइम बहुत ज्यादा हो रही थी इसलिए सी के टाइम कोल्डोर के टाइम कंडशन में था अभी नहीं है की ऐसा खत्म हो गया ये आज भी ये है इसलिए यह संगठन.

आज भी का है जो की दुनिया भर के अंदर तनाव को कम करने संघर्ष भारता जो जिंदगी है उसको कम करने के लिए और ह्यूमन रेड्स को बचाने के लिए बनाए गए हैं. तो ये चीज आपको ध्यान रखना यहां पे. अब मैं आपको जल्दी से बता देता हूं नेक्स्ट क्वेश्चन क्या है चलिए यूरोपीय संघ बताना है भारत. तो लाठी अमेरिका यानी की लैटिन अमेरिका के कैसे रिलेशन है आपको इसके बड़े में बता रहे हैं देखो. यूरोपीय संघ की स्थापना तो ऐसे एक हज़ार नौ सौ बानवे में हुई है. ऑफीशियली देखा जाए. वरना तो ऐसे एक हज़ार नौ.

सौ अड़तालीस से ही कम कर रहा है, इसके नाम बदले गए एक हज़ार नौ सौ छप्पन के अंदर, अ हज़ार नौ सौ छियासी के अंदर. नाम. हम काफी बारिश के बदले गए हैं, फाइनली मैट्रीेट की संधि के बाद एक नवंबर एक हज़ार नौ सौ बानवे कोई स्थिति में ए गया था और इस प्रकार आज यूरोपीय संघ अट्ठाईस देशों का एक group है और इसका अपना एक झंडा है. अपना एक संविधान है. इसकी अपनी एक करेंसी है जिसको यूरो कहा जाता है।. इसका इम्पोर्टac.

डोर से भी ज्यादा है. आपट्ठस कंट्री से मिलकर बना हुआ है. इनका अपना ही संविधान भी है. अपना ही इनकी वैल्यू भी है. जैसे देखोगे आपस में शांति के लिए कम करते हैंने वैल्यूज और वे्व के लिए कम करते हैं. आपस में यह किसी भी कंट्री में जा सकते हैं. अट्ठाईस कंट्री स्पिन के पुर्तगाल में जा सकता पुर्तकाल का जर्मनी में जा सकता है वि डाउट अन्य वीजा. तो सबसे बड़ी बात इनके लिए ये है लिबर्टी इक्वालिटी की बात करते हैं. जस्टिस के बात करते हैं. सस्ट लेवल डेवलपमेंट की बात करते हैं. डेवलपमेंट के अंदर. लोगों को रोजगार मिल सके इसकी बात करते हैं. एंड समाज के अंदर जो भेदभाव उसको खत्म करने की बात करते हैं. यह सबसे ए और टेक्नोलॉजी का.

लेनदेन कर सके अट्ठाईस कंट्री आपस में गुड्संड सर्विसेज का भी लेन-देन कर सके ये मैनली, इसके ऊपर, बात.

करते हैं। तो इनका जो में पर्पस है आपस में विकास करना, आपस में मिलजुल कर रहना और इसीलिए ये तरक्की पे भी है. आप देखोगे इनकी ऑपरेशन जो है कंट्री की है वो काफी कम है और जो समस्या है वो कम से कम कर राखी है. इसलिए इनको वेस्टर्न कंट्री यानी की डिवेलप्ड कंट्री भी कहा जाता है. इसके बाद जो हमने देखा ये सारे मैंने अपने नोट्स में शामिल किया हुआ इस नोट को डाउनलोड कर लेना, नोट्स के लिंक नीचे वीडियो के डिस्क्रिप्शन बॉक्स में दिया हुआ है. अब हम बात करते लटिन अमेरिका के साथ तो लटिन के साथ भारत के संबंध बहुत अच्छे रहे हैं. ऐसे कि लैटिन अमेरिका के साथ इतनी बात नहीं होती तो संबंध खराब रहे।. काफी अच्छे संबंध.

रहे क्योंकि देख तो एंटरटेनमेंट के पर्पस से या स्पोर्ट्स के पर्पस से हमारे संबंध बहुत अच्छे रहे हैं. भारत के जब नए प्रधानमंत्री बने थे मोदी जी तो पंद्रह सोलह जुलाई को जब ब्रक्ष शिखर सम्मेलन गए थे ब्राजील में, तो उस टाइम भी हमारे संबंध ब्राज़ल से अच्छे हुए क्योंकि लैटरी कैसे? काफी सारे कंट्री जिनके साथ भारत के काफी अच्छे संबंध रहे हैं. लेकिन हम देखें तो लैट अमेरिका के साथ भारत के इतने अच्छे संबंध क्यों? यह भारत क्यों चाहता है? ऐसा बना देखो. कुल मिलाकर देखा जाए तो लगभग मैं आपको बता रहा हूं की जो लैट अमेरिक कंट्रीज सभी मिलाकर चार दशमलव नौिलियन की जीडीपी है.

सभी को मिला लिया जाए तो ऐसे तो डेवलपिंग कंट्रीज में ए जाते हैं. कंट्री जिसमें ब्राज़ील वगैरा हो गया, काफी मेक्सिको वगैरा हो गया, हो गया.

IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व- चिली हो गया मतलब गरीबी कंट्री ऐसी तो नहीं है क्योंकि बाद में सब कुछ है यह भी गरीब कंट्री में ही आते हैं. छः सौ मिलियन आबादी वाले क्षेत्र हैं जो की भारत से तो आधा है ये लगभग परंतु ये क्षेत्रफर की दृष्टि से भारत से पांच गुना बड़े हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र.के लैट अमेरिका के और कैरवाई संबंधी एक आयोग की रिपोर्ट आई थी. उसमें ये कहा गया था कि वर्ष दौ हज़ार तेरह में लैटिन अमेरिका का जो एफडीआई है वहा एक सौ उनासी बिलियनलर था जो विश्व के किसी भी क्षेत्र के लिए सबसे अच्छा रिकॉर्ड कि के रूप में दुनिया भर के अंदर एक उनसी बिलियन डॉलर का इन्वेस्टमेंट किया हुआ है लैटिन अमरिक कंट्र ने देखो. संयुक्त राष्ट्र, लैटिन अमेरिका एवं कैव संबंधी आर्थिकग की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष दौ हज़ार तेरह में लैटिन अमेरिका का जोरेक्ट इन्वेस्टमेंट जो है एफडीआई. ये शुद्ध रूप से एक सौ उनासी बिलियन डॉल का था IGNOU MPSE-001 India and the World भारत एवं विश्व

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